वहीं यदि भगवान भैरव के रूप की बात करें तो इनकी सबसे अधिक पूजा बटुक भैरव के रूप में की जाती है। इसका कारण ये है कि बटुक भैरव भगवान भैरव का ही सौम्य रूप है।
मान्यता है कि भैरव की पूजा से मन में व्याप्त अनजाना भय दूर होता है। जिससे व्यक्ति में साहस और बल आता है, और शत्रुओं पर जीत दर्ज होती है। भैरव की मुख्य रूप से तंत्र शास्त्र में पूजा की जाती है। यदि आप भी शत्रुओं से परेशान हैं, या कोई अनजाना भय आपको सता रहा हैं, इसके अलावा यदि कोई भी नया काम शुरू करने में आपको डर लगता है या आपको महसूस होता है कि आपके आसपास कोई अदृश्य नकारात्मक शक्तियां हैं तो आपको इस कालाष्टमी के दिन शुक्रवार 16 दिसंबर को भगवान भैरव की पूजा अवश्य करना चाहिए। यही नहीं काल भैरव की पूजा शनि के दोषों से भी मुक्ति प्रदान करती है।
ऐसे हुआ भैरव का जन्म
शिवपुराण के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अत: इस तिथि को काल भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। मूलत: अष्टमी तिथि भैरवनाथ के नाम ही है, इसलिए प्रत्येक मास की अष्टमी तिथि को काल भैरव की पूजा की जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य ने समस्त लोकों में आतंक मचा रखा था। एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव पर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई। कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूप सज्जा देखकर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कह दिए थे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किंतु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दंडधारी एक प्रचंड काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिए आगे बढ़ी। यह देख ब्रह्मा भयभीत हो गए फिर भगवान शंकर के कहने पर काया शांत हुई।
भैरव का स्वरूप अत्यंत विकराल और डरावना है, लेकिन उनकी उपासना सभी भयों से मुक्त करती है। काल भैरव का गहरा काला रंग, स्थूल शरीर, अंगार के समान दहकते नेत्र, काले डरावने चोंगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कंठमाला, हाथों में लोहे का दंड और सवारी काला श्वान है। उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। ये तांत्रिकों के प्रमुख देवता है। कालांतर में भैरव उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव और काल भैरव प्रसिद्ध हुई। जिसमें बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं, जबकि काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
कालाष्टमी पर ये करें
कालाष्टमी के दिन भगवान शिव और उनके रौद्र स्वरूप भैरव नाथ की पूजा की जाती है। कालाष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय” लिखकर काले पत्थर के शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे समस्त संकट दूर होते हैं।