मान्यता के अनुसार इस दिन इन तीनों देवी-देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, बुद्धि और घर में शांति के साथ ही तरक्की का वरदान मिलता है। ऐसे में दिवाली पर की पूजा के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक माना गया है।
दिवाली पूजा की पूजन सामग्री
पंडित एके शुक्ला के अनुसार दिवाली पूजा के सामान की तकरीबन समस्त चीजें घर पर मिल जाती हैं। जबकि कुछ अतिरिक्त चीजों को बाहर से लाया जा सकता है।
पूजन सामग्री इस प्रकार हैं- लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा या चित्र के अलावा रोली, कुमकुम,खील, बताशे, गंगाजल, पान, सुपारी,चावल, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, लौंग, इलायची, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया,कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, पंचामृत, दूध, मेवे, यज्ञोपवीत (जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, थाली, चांदी का सिक्का,फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, देवताओं के प्रसाद के लिए बिना वर्क का मिष्ठान्न।
पूजा विधि : दिवाली के दिन ऐसे करें पूजा
दिवाली के दिन मुख्य पूजा रात में करने का विधान है। वहीं पूजा के दौरान सबसे पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को विराजमान करें।
इसके पश्चात हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर मंत्र (ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।) पढ़ते हुए छिड़कें। इसके पश्चात इसी तरह से स्वयं को और अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।
अब पृथ्वी देवी को प्रणाम करके मंत्र (पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः) के साथ उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर बैठें।
जिसके बाद “ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः” कहते हुए गंगाजल का आचमन करें।
दिवाली: ध्यान व संकल्प विधि
गंगाजल के आचमन के बाद मन को शांत कर आंखें बंद कर लें और फिर देवी मां को मन ही मन प्रणाम करने के पश्चात हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के दौरान हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल अवश्य होना चाहिए।
वहीं इस समय हाथ में एक रूपए (या यथासंभव धन) का सिक्का भी ले लें। अब इसके बाद (हाथ में इन सब को लेकर) संकल्प करें कि मैं अमुक (आपका नाम) व्यक्ति अमुक (जहां आप हैं उस जगह का नाम) स्थान व समय पर मां लक्ष्मी, सरस्वती और गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे शास्त्रोक्त फल मुझे प्राप्त हों।
इसके पश्चात सबसे पहले भगवान गणेशजी व मां गौरी का पूजन करें और फिर कलश पूजन के बाद नवग्रहों का पूजन करना चाहिए। फिर अक्षत और पुष्प को हाथ में लेकर नवग्रह स्तोत्र पढ़िए। फिर भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन करें, जिसमें सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं का गंध, अक्षत व पुष्प से पूजन करें।
इस पूरी प्रक्रिया मौली को गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण करने के पश्चात खुद के हाथ पर भी बंधवा लें। इस पूरी प्रक्रिया के बाद देवी-देवताओं को तिलक लगाने के बाद खुद को भी तिलक लगवाएं और फिर मां महालक्ष्मी की पूजा शुरू करें।
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श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें
यहां सबसे पहले भगवान गणेशजी, लक्ष्मीजी का पूजन करें। उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 या 21 दीपक जलाएं और मां को श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। फिर मां को भोग लगाकर उनकी आरती करें। इस समय श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें, माना जाता है इससे देवी मां अत्यधिक प्रसन्न होती हैं। यह सब करने के पश्चात आपकी पूजा पूर्ण हो जाती है।
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ऐसे करे क्षमा-प्रार्थना करें
पूजा पूर्ण होने के बाद देवी मां से जाने-अनजाने हुई समस्त भूलों के लिए क्षमा मांगते हुए प्रार्थना करें। इस दौरान देवी मां से कहें कि- हे! मां न तो मैं आह्वान करना जानता हूँ, और न ही विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे मेरी गलतियों के लिए क्षमा करें। मंत्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवी! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। मैंने यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।