कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि शुरु: गुरुवार, 18 नवंबर को 11:55 PM से
पूर्णिमा तिथि का समापन: शुक्रवार, 19 नवंबर को 02:29 PM तक।
इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए। मान्यता के अनुसार कृतिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृषभ (बैल) दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी,घोड़ा, रथ,घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है।
जबकि इस दिन उपवास के संबंध में मान्यता है कि इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान करने से ‘संतान व्रत’ पूर्ण होता है।
मान्यता के अनुसार कार्तिका पूर्णिमा से प्रारंभ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन और दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन यमुनशजी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन दीपदान, शय्यादि का दान और ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासियों में से एक मानी गई है।
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इस दिन में शालिग्राम के साथ तुलसी पूजा, सेवन और सेवा का भी विशेष महत्व माना गया है। इस दिन तीर्थ पूजा, गंगा पूजा, विष्णु पूजा, लक्ष्मी पूजा और यज्ञ-हवन आदि भी विशेष माने गए हैं। इस दिन तुलसी के सामने दीपक जरूर जलाना चाहिए और इस मंत्र ‘ देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः। नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये’ को पढ़ना चाहिए।
कथा:
एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़—चेतन, जीव और देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने को कहा।
इस पर त्रिपुर ने वर मांगा-‘ न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।’ दस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। जिसके परिणामस्वरूप महादेव और त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा व विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया।
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इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की तरह दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है।
गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) :
कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु यानि गुरु नानकदेव का जन्म हुआ था। ऐसे में सिख धर्म के अनुयायी भी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पर्व (Guru Parv 2021), प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव के रूप में भी मनाते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास की जाती है और बहुत बड़े स्तर पर जगह-जगह पर लंगर किया जाता है।
देव दिवाली की कथा
इसके अलावा हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दीपावली मनाते है। जिसके तहत वे इस दिन यानि देव दीपावली पर धरती पर उतर आते हैं। माना जाता है कि इस दिन काशी के घाटों पर देवता दीपावली मनाते हैं। और समस्त देवता एक साथ मिलकर देवाधिदेव भगवान शिव की महाआरती करते हैं।