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Guru Pradosh Vrat 2023: प्रदोष व्रत आज, जानें गुरु प्रदोष व्रत कैसे देता है ऐश्वर्य और वैभव, महत्व और कथा भी

Guru Pradosh Vrat 2023 puja vidhi shubh muhurat vrat katha: गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को 100 गायों को दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। वहीं यह सभी प्रकार के कष्ट और पापों को नष्ट करने वाला होता है। वहीं जो इस व्रत की कथा को श्रद्धा से पढ़ता है और सुनता है उसे वैभव और ऐश्वर्य मिलता है। पत्रिका.कॉम के इस लेख में जानें गुरु प्रदोष व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत का महत्व और कथा भी पढ़ें…

Jun 01, 2023 / 10:52 am

Sanjana Kumar

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Guru Pradosh Vrat 2023 puja vidhi shubh muhurat vrat katha: त्रयोदशी तिथि में शाम का समय प्रदोष काल कहा जाता है। सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को मंगलकारी माना गया है। आज देशभर में यह व्रत पर्व मनाया जाएगा। माना जाता है कि इसे करने से शिव जी की कृपा प्राप्त होती है। जब यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ता है, तो इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है। माना जाता है कि गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को 100 गायों को दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। वहीं यह सभी प्रकार के कष्ट और पापों को नष्ट करने वाला होता है। वहीं जो इस व्रत की कथा को श्रद्धा से पढ़ता है और सुनता है उसे वैभव और ऐश्वर्य मिलता है। पत्रिका.कॉम के इस लेख में जानें गुरु प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त, व्रत का महत्व और कथा भी पढ़ें…

गुरु प्रदोष व्रत 2023 तिथि
हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत आज 1 जून गुरुवार के दिन दोपहर 1 बजकर 39 मिनट पर होगी और इसका समापन 2 जून को दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर हो जाएगा। प्रदोष व्रत के दिन शिव की उपासना प्रदोष काल में की जाती है। ऐसे में यह व्रत 01 जून 2023, गुरुवार के दिन रखा जाएगा। गुरुवार का दिन होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत का नाम से जाना जाएगा।

 

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गुरु प्रदोष व्रत 2023 शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार 1 जून को भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल अर्थात शाम 7 बजकर 14 मिनट से रात 9 बजकर 16 मिनट के बीच करने से विशेष लाभ मिलता है। साथ ही इस दिन शुभ वरीयान योग का बन रहा है। यह योग शाम 7 बजे तक रहेगा और इस दिन स्वाती नक्षत्र बन रहा है, जो पूरी रात रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों संयोगों को धार्मिक कार्य के लिए बेहद शुभ माना गया है।

 

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गुरु प्रदोष व्रत महत्व
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत रखने से भगवान शिव जल्द खुश हो जाते हैं और साधक की सभी मनोकामना पूरी कर देते हैं। इस विशेष दिन पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा का भी विधान है। माना जाता है कि ऐसा करने से दाम्पत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है और परिवार में कष्टों का नाश होता है। इसके साथ प्रदोष व्रत रखने से कई तरह के ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिल जाती है।

 

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यहां पढ़ें गुरु प्रदोष व्रत कथा

एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हुआ और स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गए और गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे।

बृहस्पति देव बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।

वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।

चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!

माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुई- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है। अतएव मैं तुझे वह शाप दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा, अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।

जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना।

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है। अत: हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो। देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई।

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