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Gangaur vrat Katha: यह व्रत देता है स्त्रियों को अटल सौभाग्य, जानें इसके पीछे की कथा

Gangaur date 2021: गणगौर व्रत 15 अप्रैल 2021 को जानें भगवान शिव व माता पार्वती की पौराणिक कथा…

Apr 09, 2021 / 01:20 pm

दीपेश तिवारी

Gangaur date 2021 with shubh muhurat and puja vidhi

Gangaur date 2021 with shubh muhurat and puja vidhi

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मह‍िलाएं मां गौरी का गणगौर व्रत करती हैं। यह व्रत मुख्‍यत: मध्यप्रदेश व राजस्‍थान का पर्व में प्रमुखता से मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यह गणगौर पूजा का पर्व गुरुवार के दिन 15 अप्रैल 2021 को मनाया जाएगा।

शुभ मुहूर्त :
चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि आरंभ- 14 अप्रैल 2021 दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से
चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि समाप्त- 15 अप्रैल 2021 शाम 03 बजकर 27 तक

गौरी पूजा आरंभ- 29 मार्च 2021 दिन सोमवार से
गौरी पूजा समाप्त- 15 अप्रैल 2021 दिन गुरुवार

गणगौर पूजा 2021 पूजन शुभ मुहूर्त-
15 अप्रैल 2021 दिन गुरुवार सुबह 05 बजकर 17 से 06 बजकर 52 मिनट तक
पूजा की कुल अवधि- 35 मिनट

ऐसे समझें गणगौर व्रत…
दरअसल होली के दूसरे दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से कुमारी और विवाहित यानि नवविवाहिताएं हर दिन गणगौर पूजती है। इसके बाद वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी , तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं। फिर दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
गणगौर व्रत भारतीय हिंदू स्त्रियों का त्यौहार है। इस दिन सधवा स्त्रियां व्रत करती है। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला माना गया है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है। यही कारएा है कि हिंदू स्त्री समाज में यह दिन एक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
गौरी पूजन का यह त्यौहार भारत के लगभग सभी प्रांतों में थोड़े बहुत नाम भेद से धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मध्यप्रदेश व राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्यौहार है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर ने पार्वती जी को और पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था।
इस दिन स्त्रियां सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं और व्रत धारण करने से पहले रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं।

इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और 24 अंगुल लंबी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा किया जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी यानि माता पार्वती बनाकर (स्थापना करके ) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, रोली, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल,महावर आदि चढ़ाया जाता है।

चंदन, अक्षत, धूप , दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन करके सुहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है। फिर भोग लगाने के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं।

गौरी जी का पूजन दोपहर को होता है। इसके बाद दिन में एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए निषिद्ध है।

गणगौर पर विशेष रूप से मैदे के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों और सास के कपड़ों का बयाना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में हर वर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है।

ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े और सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर हर किसी को सम्पूर्ण श्र्ृंगार की वस्तुएं और दक्षिणा दी जाती है। गणगौर पूजन के समय स्त्रियां गौरी जी की कथा भी कहती है।

गणगौर की कथा…
एक बार भगवान शंकर, पार्वतीजी और नारद जी के साथ पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकले। इसके बाद चलते लते तीनों एक गांव में पहुंचे। उस दिन चैत्र शुक्ल तृतीया थी। जब गांव वालों ने सुना कि भगवान शंकर, पावती जी सहित गांव में पधारे हैं तो उनके आगमन का समाचार सुनकर गांव की कुलीन स्त्रियां स्वागत के लिए स्वादिष्ट और रुचिकर भोजन बनाने लगीं। भोजन की तैयारी में उन्हें देर हो गई।

वहीं साधारण कुल की स्त्रियां जैसे बैठी थीं वैसे ही थाली में हल्दी-चावल और जल लेकर दौड़ती हई शिव-पार्वती के पूजन के लिए उनके पास पहुंच गईं। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार कर , उनकी भक्ति रूपी वस्तुओं को स्वीकार करत हुए उनके उपर सारा सुहाग रस छिड़क दिया। जिससे वे स्त्रियां अटल सौभाग्य प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं।

इसके बाद गांव की कुलीन स्त्रियां सोलह श्रृंगार और आभूषणों से सजी हुई, अनेक प्रकार के पकवान और पूजा सामग्री लेकर माता गौरी और भगवान शंकरजी की पूजा करने पहुंची। सोने-चांदी से निर्मित उनकी थालियों में कई प्राकर के पदार्थ सजे हुए थे।

उन्हें देखकर शिवजी ने शंका व्यक्त करते हुए पार्वतीजी से कहा—’देवी! तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों में बांट दिय, अब इन्हें क्या दोगी?’

इस पर माता पार्वती ने कहा-‘भगवन !आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को तो मैंने केवल उपरी पदार्थोे से बना रस दिया है। इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा। लेकिन दन कुलीन स्त्रियों को अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त रस का सुहाग दु्ंगी। यह सुहाग रस जिसकी मांग में पड़ेगा वह मेरे समान ही तन—मन से सौभाग्यवती हो जाएगी।

इसके बाद कुलीन स्त्रियों के पूजन कर लेने पर माता पार्वती ने अपनी उंगली चीरकर उन पर छिड़की। जिस पर जैसे छींटे पड़े, उसने वैसा ही सुहाग पाया। पार्वती जी ने कहा तुम लोग वस्त्राभूषणों का परित्याग कर माया-मोह से रहित तन-मन-धन से पति सेवा करना। अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। पार्वती जी के यह आशीर्वचन सुनकर उन्हें प्रणाम करके कुलीन स्त्रियां अपने-अपने घर लौट गईं।

इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा से पार्वती जी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू के माहदेव बनाकर उनका पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के ही पकवान बनाकर शिवजी का भोग लगाया। इसकके बाद प्रदक्षिणा करके, नदी तट की मिट्टी से माथे पर टीका लगाकर, बालू के दो कणों का प्रसाद पाया और शिवजी के पास वापस लौट आईं।

इस सब पूजन आदि में पार्वती जी को नदी किनारे बहुत देर हो गई थी। अत: महादेव ने उनसे देरी से आने का कारण पूछा। इस पर पार्वतीजी ने कहा-‘वहां मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे, उन्हीं से बातें करने में देरी हो गई।’

लेकिन भगवान तो भगवान ही थे। वे शायद कुछ और ही लीला रचना चाहते थे। अत: उन्होंने पूछा- ‘तुमने पूजन करके किस चीज का भोग लगाया और क्या प्रसाद पाया?’ यह सुनकर शिवजी भी दूध-भात खाने के लिए नदी-तट की ओर चल पड़े। ऐसे में पार्वतीजी दुविधा में पड़ गईं।

उन्होंने सोचा ऐसे तो सारी बात खुल जाएगी। अत: उन्होंने मौन-भाव सेशिवजी का ध्यान करके प्रार्थना की,’हे प्रभु! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूं तो आप ही इस समय मेरी लाज रखिए।’

इस प्रकार प्रार्थना करते हुए पार्वतीजी भी शंकरजी के पीछे पीछे चलने लगीं। अभी वे कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें नदी के तट पर एक सुंदर माया महल दिखाई दिया। जब वे उस महल के भीतर पहुंचे तो वहां देखते हैं कि माता पार्वती के भाई व भाभीयां आदि सपरिवार मौजूद हैं। उन्होंने शंकर-पार्वती का बड़े प्रेम से स्वागत किया।

वे दो दिन तक वहां रहे और उनकी खूब मेहमानदारी होती रही। तीसरे दिन जब पार्वतीजी ने शंकरजी से चलने के लिए कहा तो वे तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दीं। तब मजबूर होकर शंकरजी को पार्वती के साथ चलना पड़ा।

नारदजी भी साथ में चल दिए। तीनों चलते चलते बहुत दूर निकल गए। सायंकाल होने के कारण भगवान भास्कर आपने धामको पधार रहे थे। तब शिवजी अचानक पार्वती से बोले-‘मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूं।’
इस पर माता पार्वतीजी बोलीं-‘ठीक है, मैं ले आती हूं।’ किंतु शिवजी ने उन्हें जाने की आज्ञा नहीं दी। इस कार्य के लिए उन्होंने ब्रह्मा पुत्र नारदजी को वहां भेज दिया। नारद ने वहां जाकर देखा तो उन्हें महल का नामोनिशान तक न दिखा। वहां तो दूर-दूर तक घेर जंगल ही जंगल था।

इस अंधकारपूर्ण डरावने वातवरण को देख नारदजी बहुत आश्चर्यचकित हुए। नादरदजी वहां भटकने लगे। और सोचने लगे कि कहीं वह किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? तभी अचानक बिजली चमकी और नारद जी को माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी। नारदजी ने माला उतार ली आरै उसे लेकर भयातुर अवस्था में शीर्घ ही शिवजी के पास आए और शिवजी को अपनी विपत्ति का विवरण कह सुनाया।

इस प्रसंग को सुनकर शिवजी ने हंसते हुए कहा-‘ हे मुनि! आपकने जो कुछ दृश्य देखा, वह पार्वती की अनोखी माया है। वे अपने पार्थिव पूजन की बात आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठ बोला था।

फिर उस को सत्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से माया महल की रचना की। अत: सच्चाई केा उभारने के लिए ही मैंने भी माला लाने के लिए तुम्हें दोबारा उस स्थान पर भेजा था।’

इस पर पार्वती जी बोलीं- ‘ मैं किस योग्य हूं।’

तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा-‘माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती आदिशक्ति है। यह सब आपके पतिव्रत धर्म का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियां आपके नाम का स्मरण करने मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती है और समस्त सिद्धियों को बना और मिटा सकती है। तब आपके लिए यह कर्म कौन सी बड़ी बात है।

हे माता! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली और सार्थक होता है। जहां तक इनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना को छिपाने का सवाल है। वह भी उचित ही जान पड़ती है क्योंकि पूजा छिपाकर ही करनी चाहिए। आपकी भावना और चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।

मेरा यह आशीर्वचन है- ‘ जो स्त्रियां इस तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगल कामना करेंगी उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु पति का संसर्ग मिलेगा और उसकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होगी। फिर आज के दिन आपकी भक्ति भाव से पूजा-आराधना करने वाली स्त्रियों को अटल सौभाग्य प्राप्त होगा ही।’

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