scriptअपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त | Apara Ekadashi : Shubh Muhurta, Puja Vidhi 18 May 2020 | Patrika News
त्योहार

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

इसका व्रत करने से पूर्वजों को प्रेत योनी से मिलती है मुक्ति

May 16, 2020 / 02:19 pm

Shyam

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

इस साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत सोमवार 18 मई 2020 को रखा जाएगा। इस एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। अपरा एकादशी के दिन जाने अनजाने में हुई गलतियों और पापों से मुक्ति की कामना से व्रत रखकर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्‍य को प्रेत योनि के कष्‍ट नहीं भुगतने पड़ते, साथ ही भवसागर भी तर जाता है। ये हैं पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त का शुभ समय।

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

अपरा एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त-

– अपरा एकादशी तिथि का आरंभ 17 मई दिन रविवार को दोपहर में 12 बजकर 44 मिनट से हो जाएगा।

– अपरा एकादशी का समापन 18 मई सोमवार को दोपहर 3 बजकर 8 मिनट पर होगा।

मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालु अपरा एकादशी के दिन श्री विष्णु यंत्र की विशेष पूजा आराधना करते हैं। अपरा एकादशी के दिन की लोग ग्रह पीड़ा, वास्तुदोष और पारिवारिक कलह से छुटकारा पाने के लिए अनेक उपाय भी करते हैं। अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत नियमों के साथ शुरू हो जाती है।

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

अपरा एकादशी पूजा विधि

व्रती को दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। सुबह सूर्योदय से पहले पवित्र नदी या गंगाजल मिले जल से स्नान करके धुले वस्त्रों को ही पहनना चाहिए। विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुशा के आसन पर बैठकर, पीले कपड़े के आसन पर भगवान विष्णु की फोटो को स्थापित कर- धूप दीप जलाएं और कलश स्थापित कर षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए।

अपरा एकादशी 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

अपरा एकादशी के दिन निराहार उपवास रहकर शाम के समय अपरा एकादशी व्रत कथा सुनें या पढ़ें। सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाने के बाद फलाहार लिया जा सकता है। अपरा एकादशी के दिन घर मे धन की बरकत के लिए तुलसी की माला से पीले आसन पर बैठकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप ग्यारह सौ बार अवश्य करना चाहिए। इस दिन की गई पूजा और व्रत से प्रेत योनि में भटक रही आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।

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