अपनी हार का डर सता रहा था प्रधानमंत्री थरेसा मे को मतदान से पहले ही अपनी हार का डर सता रहा था और वह पहले भी एक बार वोटिंग को टलवा चुकी थीं। वह लगातार सांसदों से पक्ष में वोट करने की अपील कर रही थीं। गौरतलब है कि करीब 18 महीने तक चली बातचीत की प्रक्रिया के बाद नवंबर में यूरोपीय संघ के साथ ब्रेग्जिट समझौते पर सहमति हुई थी। दिसंबर में समझौते को लेकर निम्न सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) में मतदान होना था, लेकिन हार के डर से इसे टाल दिया गया था।
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान झेलना पड़ेगा विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन के अनुसार प्रधानमंत्री टरीजा मे सांसदों की चिंताओं को दूर करने में पूरी तरह से नाकाम रही हैं। ब्रेग्जिट पर शाम सात बजे मतदान शुरू हुआ और देर रात फैसला आ गया। उम्मीद किया जा रहा है कि ब्रेग्जिट समझौते में बदलाव होगा या फिर इसे रद्द कर दिया जाएगा। पीएम थरेसा अगर प्रस्ताव खारिज होने के बाद भी 29 मार्च को यूरोपीय संघ से अलग हो जाती हैं तो इससे दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान झेलना पड़ेगा और वैश्विक बाजार में उसकी साख कमजोर होगी। संसद के नियम के मुताबिक थरेसा मे प्रस्ताव पारित कराने में विफल हुईं और उन्हें तीन दिन के अंदर अपने अगले कदम को बताते हुए नया प्रस्ताव लेकर आने की जरूरत है।
Read the Latest
World News on Patrika.com. पढ़ें सबसे पहले
World News in Hindi पत्रिका डॉट कॉम पर.