scriptआपातकाल में मिली यातनाओ ने ”कमांडर“ को 1977 में बनाया था इटावा से सांसद, जिसके बाद शुरू हुई बीहड़ में राजनीति | untold story beehad torture in emergency Commander get MP from Etawah | Patrika News
इटावा

आपातकाल में मिली यातनाओ ने ”कमांडर“ को 1977 में बनाया था इटावा से सांसद, जिसके बाद शुरू हुई बीहड़ में राजनीति

महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े उत्तर प्रदेश के इटावा 1977 में सांसद निर्वाचित हुए कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया का नाम बड़ी ही सिद्दत से लिया जाता है। राजनैतिक टीकाकार ऐसा मानते है कि कमांडर की 1977 मे मिली जीत को आपातकाल मे मिली यातानाओ को इनाम स्वरूप इटावा की जनता से सांसद बना कर इनाम दिया था । कमांडर के साथ आपातकाल में उनकी पत्नी तत्कालीन राज्यसभा सदस्य सरला भदौरिया और उनके बेटे सुधींद्र भदौरिया को भी गिरफतार कर अलग-अलग जेलो में रखा गया ।

इटावाJun 24, 2022 / 11:45 pm

Dinesh Mishra

Etawah MP of Commander

Etawah MP of Commander

देश में 25 जून 1975 लागू किये गये आपातकाल को काला अक्षर माना जाता है । आपातकाल मे चंबल घाटी से जुडे इटावा मे गिरफतार हुए समाजवादी कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की चर्चा करना आज भी लोग बडे ही गर्व की बात मानते है । समाजवादियो के गढ इटावा में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया का नाम एक वक्त मे बड़े जोर शोर से सुनाई दिया करता था । असल में कमांडर नाम का यह शख्स ही समाजवादी आंदोलन का पहला और बड़ा अनुयाई बना । चंबल के बीहड़ों में कभी समाजवादी आंदोलन इसी शख्स की बदौलत फला फूला रहा । आजादी से पहले समाजवादियों ने यहॉ पर लाल सेना बनाई थी । जिसका काम जबरन सरकारी कामकाज बाधित करना था । कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया नौजवानों ने इस दल के नेता के रूप में उभरे । लोहिया,जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी जैसे दिग्गजों ने उनके कर्तव्य को देख कर के उन्हें कमांडर करना शुरू कर दिया । यह विश्लेषण उनके नाम से ताजिंदगी चिपका रहा । 10 मई 1910 को बसरेहर के लोहिया गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौेरिया ने 1942 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया 1942 में उन्होंने सशस्त्र लाल सेना का गठन किया । बिना किसी खून खराबे के अंग्रेजों को नाको चने चबबा दिये । इसी के बाद उन्हें कमांडर कहा जाने लगा ।
1957,1962 और 1977 में इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए ।
कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया संसद में भी उनके बोलने का अंदाज बिल्कुल अलग ही रहता रहा । 1959 में रक्षा बजट पर सरकार के खिलाफ बोलने पर उन्हें संसद से बाहर उठाकर फेंक दिया गया । लोहिया ने उस वक्त उनका समर्थन किया । पूरे जीवनकाल में लोगों की आवाज उठाने के कारण 52 बार जेल भेजे गए । इसमें आपातकाल का भी शामिल है । पुलिस के खिलाफ इटावा के बकेवर कस्बे में 1970 के दशक में आंदोलन चलाया था । लोग उसे आज बकेवर कांड के नाम से जानते हैं । इटावा में शैक्षिक पिछड़ेपन समस्या आवागमन के लिए पुलों का आभाव जैसी समस्याओं को मुख्यता के साथ कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया उठाते रहे ।

अर्जुन सिंह भदौरिया की एक खासियत यह भी रही है कि चाहे अग्रेंजी हुकूमत रही हो या फिर भारतीय कमांडर कभी झुके नहीं है लोकतांत्रिक भारत में भी तीन बार सांसद के लिए चुने गए उनकी पत्नी भी राज्यसभा के चुनाव जीती । यह बात अलग है कि 2004 में जब उन्होंने आंखें बंद की तब तक समाजवाद और समाजवादियो ने नई रंगत हासिल कर ली थी ।
उपेक्षित चंबल घाटी मे यात्री रेलगाडी की शुरूआत

जनहित के बडे और अहम मुददे उठाने मे कंमाडर का कोई सानी नही रहा है । 27 फरवरी 2016 को अर्से से उपेक्षित चंबल घाटी मे यात्री रेलगाडी की शुरूआत होते ही उस सपने को पर लग गये जो साल 1958 मे इटावा के सांसद कंमाडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने देखा था । 1957 मे पहली बार सांसद बनने के बाद चंबल मे कंमाडर के रूप से लोकप्रिय अर्जुन सिंह भदौरिया ने सदियो से उपेक्षा की शिकार चंबल घाटी मे विकास का पहिया चलाने के इरादे से रेल संचालन का खाका खींचते हुए 1958 मे तत्कालीन रेल मंत्री बाबू जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने एक लंबा चौडा मांग पत्र इलाकाई लोगो के हित के मददेनजर रखा था जिस पर उनको रेल संचालन का भरोसा भी दिया गया था।
चंबल घाटी में रेल परियोजना
कंमाडर 1957 के बाद 1962 और 1977 मे भी इटावा के सांसद निर्वाचित हुए लेकिन उनकी चंबल घाटी मे रेल संचालन की योजना को किसी भी स्तर पर शुरूआत नही हो सकी लेकिन कंमाडर के चंबल रेल संचालन की योजना को 1986 सिंधिया परिवार के चश्मोचिराग माधव राव सिंधिया ने पूरा करने का बीडा उठाते हुए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ रखा जिस पर तत्कालिक तौर पर अमल शुरू हो गया ।
आजादी के आंदोलन के दौरान कंमाडर के नाम से लोकप्रिय रहे अर्जुन सिंह भदौरिया ने 1942 की क्रांति के नायक की छवि स्थापित कर लालसेना गठित की थी ।

कमांडर के बेटे सुधींद्र भदौरिया का कहना है कि उनके पिता ने चंबल मे आजादी के आंदोलन के दौरान जो तकलीके देखी थी,उनको दूर करने की दिशा मे सांसद बनने के बाद कई अहम निर्णय लेते हुए उनको दूर करने की दिशा मे काम किया । उन्होने बताया कि जब उनके पिता इटावा के सासंद हुआ करते थे तब इटावा का दायरा फिरोजाबाद से लेकर बिल्हौर तक हुआ करता था.

Hindi News / Etawah / आपातकाल में मिली यातनाओ ने ”कमांडर“ को 1977 में बनाया था इटावा से सांसद, जिसके बाद शुरू हुई बीहड़ में राजनीति

ट्रेंडिंग वीडियो