कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया संसद में भी उनके बोलने का अंदाज बिल्कुल अलग ही रहता रहा । 1959 में रक्षा बजट पर सरकार के खिलाफ बोलने पर उन्हें संसद से बाहर उठाकर फेंक दिया गया । लोहिया ने उस वक्त उनका समर्थन किया । पूरे जीवनकाल में लोगों की आवाज उठाने के कारण 52 बार जेल भेजे गए । इसमें आपातकाल का भी शामिल है । पुलिस के खिलाफ इटावा के बकेवर कस्बे में 1970 के दशक में आंदोलन चलाया था । लोग उसे आज बकेवर कांड के नाम से जानते हैं । इटावा में शैक्षिक पिछड़ेपन समस्या आवागमन के लिए पुलों का आभाव जैसी समस्याओं को मुख्यता के साथ कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया उठाते रहे ।
अर्जुन सिंह भदौरिया की एक खासियत यह भी रही है कि चाहे अग्रेंजी हुकूमत रही हो या फिर भारतीय कमांडर कभी झुके नहीं है लोकतांत्रिक भारत में भी तीन बार सांसद के लिए चुने गए उनकी पत्नी भी राज्यसभा के चुनाव जीती । यह बात अलग है कि 2004 में जब उन्होंने आंखें बंद की तब तक समाजवाद और समाजवादियो ने नई रंगत हासिल कर ली थी ।
उपेक्षित चंबल घाटी मे यात्री रेलगाडी की शुरूआत जनहित के बडे और अहम मुददे उठाने मे कंमाडर का कोई सानी नही रहा है । 27 फरवरी 2016 को अर्से से उपेक्षित चंबल घाटी मे यात्री रेलगाडी की शुरूआत होते ही उस सपने को पर लग गये जो साल 1958 मे इटावा के सांसद कंमाडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने देखा था । 1957 मे पहली बार सांसद बनने के बाद चंबल मे कंमाडर के रूप से लोकप्रिय अर्जुन सिंह भदौरिया ने सदियो से उपेक्षा की शिकार चंबल घाटी मे विकास का पहिया चलाने के इरादे से रेल संचालन का खाका खींचते हुए 1958 मे तत्कालीन रेल मंत्री बाबू जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने एक लंबा चौडा मांग पत्र इलाकाई लोगो के हित के मददेनजर रखा था जिस पर उनको रेल संचालन का भरोसा भी दिया गया था।
चंबल घाटी में रेल परियोजना
कंमाडर 1957 के बाद 1962 और 1977 मे भी इटावा के सांसद निर्वाचित हुए लेकिन उनकी चंबल घाटी मे रेल संचालन की योजना को किसी भी स्तर पर शुरूआत नही हो सकी लेकिन कंमाडर के चंबल रेल संचालन की योजना को 1986 सिंधिया परिवार के चश्मोचिराग माधव राव सिंधिया ने पूरा करने का बीडा उठाते हुए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ रखा जिस पर तत्कालिक तौर पर अमल शुरू हो गया ।
आजादी के आंदोलन के दौरान कंमाडर के नाम से लोकप्रिय रहे अर्जुन सिंह भदौरिया ने 1942 की क्रांति के नायक की छवि स्थापित कर लालसेना गठित की थी ।
कमांडर के बेटे सुधींद्र भदौरिया का कहना है कि उनके पिता ने चंबल मे आजादी के आंदोलन के दौरान जो तकलीके देखी थी,उनको दूर करने की दिशा मे सांसद बनने के बाद कई अहम निर्णय लेते हुए उनको दूर करने की दिशा मे काम किया । उन्होने बताया कि जब उनके पिता इटावा के सासंद हुआ करते थे तब इटावा का दायरा फिरोजाबाद से लेकर बिल्हौर तक हुआ करता था.