पीएम मोदी की पसंद होगी अहम वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। वैसे भी भाजपा प्रत्याशियों की सूची प्रधानमंत्री की रजामंदी के बिना जारी नहीं होती। फिर बनारस तो उनका अपना क्षेत्र है। ऐसे में वो यहां के रग-रग से वाकिफ है। ऐसे में ज्यादा निर्भर करेगा कि वो किसकी-किसकी दावेदारी को सही करार देते हैं या किसी की जहग फिर किसी और नए चेहरे को मैदान में उतारते हैं।
आठ में से छह सीटों पर है भाजपा का कब्जा बता दें कि वर्तमान में बनारस की आठ में से छह सीट पर भाजपा का कब्जा है। वहीं एक सीट भाजपा-अपना दल गठबंधन के तहत अपना दल (अनुप्रिया गुट) के कब्जे में है जबकि आठवीं सीट जो भाजपा-सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के गठबंधन के तहत सुभासपा के कब्जे में है। मजेदार ये कि जो सीट सुभासपा के कब्जे में है वो सुरक्षित सीट है जहां बीजेपी को इस बार प्रत्याशी खोजना होगा।
गोरखपुर के विधायक का टिकट कटने के बाद से वाराणसी के विधायकों की धड़कन और तेज
भाजपा की पहली सूची से जिस तरह से गोरखपुर के अजेय विधायक डॉ आरएमडी अग्रवाल का नाम गायब हुआ उसने कई दिग्गजों की नींद उड़ा दी है। बता दें कि अग्रवाल 2002 से 2017 तक लगातार चार बार विधायक बने लेकिन इस बार उनका टिकट काट दिया गया है। यह दीगर है कि अग्रवाल पर योगी आदित्यनाथ को तरजीह दी गई है। फिर भी चर्चा ये है कि अगर डॉ अग्रवाल का टिकट कट सकता है तो इस लपेटे में कोई भी आ सकता है।
नए चेहरे पर गेम खेलना है भाजपा की फितरत वैसे भी हर चुनाव में कुछ नए चेहरों पर दांव लगाना भाजपा की फितरत में शामिल है। अगर 2017 के चुनाव को ही लें तो भाजपा ने उस दिग्गज विधायक का टिकट काट कर एक नए चेहरे को मैदान में उतारा था जो विधानसभा चुनावों की दृष्टि से अजेय रह। सात बार चुनाव जीते। उनके बारे में विपक्षी भी दबे मन से ही सही पर ये कहते रहे कि उन्हें हरा पाना आसान नहीं। वो विधायक और कोई नहीं बल्कि जनप्रिय नेता श्यामदेव राय चौधरी ‘दादा’ रहे। भाजपा ने उनकी जगह नए चेहरे के रूप में डॉ नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया जो पूर्व में पार्षद का चुनाव बुरी तरह से हार चुके थे। लेकिन डॉ नीलकंठ ने कांग्रेस के दिग्गज और बनारस के पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्र को कांटे के संघर्ष में पराजित किया। फिर योगी मंत्रिमंडल में शामिल हुए और धर्म नगरी काशी के महत्व को देखते हुए उन्हें महत्वपूर्ण धर्मार्थ कार्य विभाग का मंत्री बनाया गया। यहां ये भी बता दें कि डॉ नीलकंठ शहर दक्षिणी से विधायक चुने गए जिस क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट श्री काशी विश्वनाथ धाम है। शनिवार को भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची के बाद शहर की चक्की चौपाटी पर नीलकंठ की दावेदारी को लेकर चर्चा-ए-आम है। कानाफूसी तेज हो गई है।
कैंट विधानसभा क्षेत्र से तीन दशक से है एक परिवार का कब्जा राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा लगातार अखिलेश यादव सहित समूचे विपक्ष पर वंशवाद और परिवारवाद का आरोप लगा रही है। इसके ठीक विपरीत बनारस के कैंट विधानसभा क्षेत्र पर भाजपा के एक परिवार का कब्जा है। ये कब्जा है दिवंगत हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ‘हरीश जी’ के परिवार का। इस परिवार से हरीश जी की पत्नी ज्योत्सना श्रीवास्तव, खुद हरीश जी और अब उनके बेट सौरभ श्रीवास्तव विधायक हैं। सौरभ ने पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ा और कांग्रेसी दिग्गज अनिल श्रीवास्तव को पटकनी दी। बावजूद इसके उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। ऐसे में लोगों का सवाल है कि भाजपा वंशवाद के आरोप से खुद को बचाने के लिए किसी का बलिदान तो नहीं लेगी।
शहर उत्तरी में रवींद्र जायसवाल हैटट्रिक लगाने का देख रहे ख्वाब उधर शहर उत्तरी विधानसभा सीट की बात की जाए तो भाजपा के रवींद्र जायसवाल जीत की हैटट्रिक लगाने का ख्वाब देख रहे हैं। वो लगातार दो बार से कांटे के संघर्ष में जीत हासिल करते आ रहे हैं। पिछली बार ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की दोस्ती के तहत सपा के अब्दुल समद कांग्रेस कोटे से मैदान में उतारे गए और उन्होंने रवींद्र को कड़ी टक्कर दी थी। व्यापारियों के नेता के रूप में शुमार रवींद्र की नींद भी उड़ी है, जबकि वो भी योगी मंत्रिमंडल के सहयोगी हैं।
पिंडरा विधायक अवधेश सिंह भी हैं बेचैन बता दें कि पिछले चुनाव में भाजपा के डॉ अवधेश सिंह ने कांग्रेस के अजय राय को हरा कर जीत हासिल की थी। डॉ अवधेश और अजय राय के बीच इससे पहले भी कई मुकाबले हो चुके हैं और उन सभी में अजय राय बीस छूटे थे। इस बार क्या होगा, डॉ अवधेश समर्थक भी बेचैन हैं। वैसे भी कांग्रेस ने अजय राय को अपना पिछला हिसाब चुक्ता करने का मौका भी दे दिया है।
अजगरा के लिए खोजना होगा नया प्रत्याशी भाजपा के लिए अजगरा सुरक्षित सीट के लिए इस बार नया चेहरा तलाशना होगा, क्योंकि पिछली बार इस सीट पर भाजपा-सुभासपा गठबंधन के तहत सुभासपा के खाते में रही। लिहाजा अब इस पाला बदल वाली सियासत में भाजपा के लिए सुरक्षित सीट पर जिताऊ उम्मीदवार की तलाश कम परेशानी का सबब नहीं है।
भाजपा के राजभर चेहरा हैं अनिल
ओमप्रकाश राजभर से नाता टूटने के बाद अब वाराणसी क्या पूर्वांचल में भाजपा के युवा राजभर चेहरा हैं शिवपुर के विधायक अनिल राजभर। अनिल और उनके समर्थकों को पूरा भरोसा है कि वर्तमान परिदृश्य में अनिल पर कोई आंच नहीं आने वाली। फिर भी धुकधुकी तो बनी ही हुई है।
रोहनिया भी है भाजपा के कब्जे में रोहनिया विधानसभा सीट फिलहाल भाजपा के कब्जे में है। यहां से सुरेंद्र नारायण सिंह विधायक हैं। लेकिन जिस तरह से वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह पटेल, सीए प्रमोद सिंह, डॉ भावना पटेल, मुकुंद लाल जायसवाल ने दावेदारी पेश की है। साथ ही अपना दल ने अपना दावा ठोंका है, तब से सुरेंद्र व उनके समर्थकों की नींद उड़ी है।
सेवापुरी सीट से अपना दल
सेवापुरी सीट अभी गठबंधन के तहत अपना दल के पास है। नील रतन पटेल विधायक हैं। अभी दो दिन पहले ही अनिल के अपना दल से इस्तीफे की चर्चा उड़ी। हालांकि अनिल ने उसका खंडन भी कर दिया। वैसे चर्चा ये भी है कि इस बार भाजपा सेवापुरी सीट खुद अपने पास रखना चाहती है। ऐसे में ये भी देखना मजेदार होगा कि यहां से पार्टी किसे उतारती है।