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Uttar Pradesh Assembly Elections 2022: तीन दशक में बढता ही गया सपा का वोट शेयर

Uttar Pradesh Assembly Elections 2022 के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति इन दिनों चरम पर है। हर दल सेंधमारी में लगा है। इसमें फिलहाल समाजवादी पार्टी सबसे आगे है। इसे अखिलेश यादव की सियासी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। अखिलेश का सामाजिक समीकरण कितना लाभकारी होगा ये तो वक्त बताएगा। परिणाम चाहे जो हो पर देखना ये भी अहम होगा कि इस बार सपा का वोट शेयर कितना ऊपर जाता है।

Jan 16, 2022 / 06:00 pm

Ajay Chaturvedi

अखिलेश यादव

अखिलेश यादव

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. तीन दशक में 06 विधानसभा चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी की सीटें भले ही कम बेसी होती रही हों पर 2017 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो समाजवादी पार्टी के वोट शेयर में लगाता बढोत्तरी ही हुई है। हालांकि मोदी लहर के बाद भी 2017 में सपा का वोट शेयर बहुत नीचे नहीं गया। अब महा गठबंधन के जरिए पार्टी 2012 के रिकार्ड को पीछे छोड़ने की फिराक में है।
जब मुलायम ने मनवाया लोहा

सपा सुप्रीमों और सूबे के सदर रह चुके मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जब समाजवादी पार्टी ने 1993 में यूपी में चुनावी सफर शुरू किया तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मुलायम सिंह तीन बार सूबे के सदर रहे। तब मुलायम सिंह की जीत में उनके छोटे भाई शिवपाल यादव की भी अहम् भूमिका रही। मुलायम सिंह और शिवपाल यादव के सामाजिक समीकरण और उनका सियासी चातुर्य ही रहा कि उन्होंने बराबर यूपी की सियासत में खुद का लोहा मनवाया।
मुलायम ने कांशीराम संग मिल कर सत्ता संभाली

मुलायम सिंह ने 1993 में दलित वोट बैंक साधने के लिहाज से ही कांशी राम के साथ गठबंधन किया और बसपा के साथ मिल कर यूपी के सिंहासन पर आरूढ हुए। तब से ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका लोहा माना जाता रहा है।
अखिलेश-राहुल की दोस्ती नहीं चढी परवान

मुलायम और शिवपाल की बिछाई बिसात को अखिलेश यादव ने आगे बढ़ाने सिलसिला 2012 में शुरू किया। खुद साइकिल की सवारी की और गांव-गांव का दौरा किया। नतीजा मुलायम, शिवपाल और अखिलेश ने मिल कर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। लेकिन 2017 में अखिलेश का दांव खाली चला गया। राहुल गांधी के साथ उनकी दोस्ती परवान नहीं चढ सकी। उन पर वाई एम फैक्टर का ठप्पा लगा।
अखिलेश का लिटमस टेस्ट

लेकिन इस बार उन्होंने चुनावी मैदान में उतरने से पहले सियासत की बिसात को सलीके से बिछाया। इसी का नतीज है कि आज वो आठ प्रमुख दलों संग महा गठबंधन कर चुके हैं। बसपा से भाजपा में जा कर 2017 में यूपी में भाजपा की सरकारी बनवाने वाले दिग्गजों तक को फोड़ कर अपने पाले में कर लिया है। एक तरह से उन्होंने भाजपा को उसी के दांव से घेरने का काम बखूबी किया है। इसमें सबसे प्रमुख ये है कि उन्होंने इस बार यादव-मुस्लिम फैक्टर के चस्पे को काफी हद तक तोप ढांक दिया है और गैर यादव पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलित वोटबैंक को साधने की पूरी कोशिश की है। नतीजा तो 10 मार्च को ही सामने आएगा पर उन्होंने यूपी की सियासत में हलचल तो मचा ही दी है। अब देखना ये है कि अखिलेश का ये दांव कितना सफल होता है। ओपी राजभर, दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य सपा को कितना फायदा पहुंचा पाते हैं।
सपा का वोट शेयर
वर्ष- प्रतिशत-जीती सीटें
1993- 17.82 फीसद-264/109
1996-21.8 फीसद-281/110
2002-2538 फीसद-390/143
2007-2545 फीसद-393/97
2012-29.15 फीसद-401/224
2017-224 फीसद-289/47

इनसे किया है गठबंधन
रालौद, अपना दल (कृष्णा पटेल गुट), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, प्रगतिशील समाज पार्टी (लोहिया), महान दल, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जनवादी पार्टी, एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस।

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