यूं तो गोरखपुर सदर सीट की कहानी भी योगी आदित्यनाथ के इर्द-गिर्द ही घूमती है। ये वही सीट है जहां योगी आदित्यनाथ ने 2002 के चुनाव में हिंदू महासभा से डॉ राधामोहन दास अग्रवाल को भाजपा प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ लड़ा कर फतह हासिल कराई थी और ये साबित किया इस क्षेत्र में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। वही डॉ अग्रवाल बाद में भाजपा में शामिल हुए और 2007,2012 और 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करते आ रहे हैं। अब कहा ये जा रहा है कि डॉ अग्रवाल को अपने राजनीतिक गुरु योगी आदित्यनाथ के लिए खुद का बलिदान देना पड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो डॉ राधा मोहन अग्रवाल कहने को योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक शिष्य हैं। गोरखपुर में वो हर वर्ग में लोकप्रिय भी हैं। सभी के साथ सामंजस्य बिठा कर चलते हैं। उनके फैन फालोवर्स की अच्छी खासी तादाद है। वो फैन जो डॉ अग्रवाल का टिकट कटने से मायूस हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ टीम को डॉ अग्रवाल के फैन फालोवर्स पर पैनी निगाह रखनी होगी, अन्यथा भितरघात की आशंका से इंकार नहीं किया सकता। ऐसे मं भितरघात की आशंका इस अति सुरक्षित सीट पर भी योगी आदित्यनाथ के लिए चिंता का सबब हो सकती है।
भाजपा ही नहीं जनसंघ के काल से पार्टी के लिए पूरी तरह से समर्पित गोरखपुर क्षेत्र की राजनीति के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष और गोरखपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके स्व. उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला का सपा से जुड़ना गोरखपुर की सियासत के लिए बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। माना जा रहा है कि सुभावती, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सपा के टिकट पर मैदान में उतर सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो हाता के ब्राह्मण (हरिशंकर तिवारी) खेमा जो पहले से सपा के साथ हो चुका है उसका पूरा समर्थन तो होगा ही, साथ में भाजपा के ब्राह्मण जो उपेंद्र शुक्ल को दिल से पसंद करते थे उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। वैसे भी हरिशंकर तिवारी के यहां छापेमारी से स्थानीय ब्राह्मण नाराज हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ के क्षेत्रीय ब्राह्मण मतों को अपने पाले में सहेजे रखना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। क्षेत्रीय राजनीतिक पंडितों का कहना है कि चाहे विधानसभा का चुनाव रहा हो या 2018 का संसदीय चुनाव उपेंद्र की हार के पीछे योगी लॉबी का बड़ा हाथ रहा। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उपेंद्र की बीमारी और उनके निधन के बाद भी योगी आदित्यनाथ की भूमिका क्षेत्र क्या पूरे गोरखपुर-बस्ती मंडल के ब्राह्मणों को नागवार गुजरी थी। ऐसे में अगर सुभावती शुक्ला सपा के टिकट पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मैदान में उतरती हैं तो लड़ाई दिलचस्प हो जाएगी।
अभी तक कांग्रेस व बसपा ने अपन पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं। वजह चाहे जो हो पर राजनीतिक पंडितों की निगाह भी कांग्रेस की ओर लगी है कि वो किसे मैदान में उतारती है। वहीं बसपा अगर मजबूत प्रत्याशी लाती है तो योगी आदित्यनाथ के लिए काफी आसान हो जाएगा क्योंकि तब दलित वोटों में बंटवारा होना तय है।
गोरखपुर सदर सीट से आम आदमी पार्टी भी जातीय समीकरण को साधने के लिहाज से विजय श्रीवास्तव के रूप में मजबूत प्रत्याशी उतार सकती है। बता दें कि गोरखपुर सदर क्षेत्र में कायस्थ मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे में आप आदमी पार्टी के भी अच्छा चुनाव लड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
गोरखपुर सदर सीट पर करीब 4.50 लाख वोटर हैं, जिनमे सबसे अधिक कायस्थ वोटर की संख्या है। यहां कायस्थ 95 हजार, ब्राहम्ण 55 हजार, मुस्लिम 50 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, वैश्य 45 हजार, निषाद 25 हजार, यादव 25 हजार, दलित 20 हजार इसके अलावा पंजाबी, सिंधी, बंगाली और सैनी कुल मिलाकर करीब 30 हजार वोटर हैं। लेकिन सभी जातियों के वोटर चुनाव में जाति को देखकर नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर यानी योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट देते हैं।