भाई-बहनों के साथ लेना पड़ा अनाथ आश्रम का सहारा (Success Story)
अब्दुल नासर केरल के कन्नूर जिले के रहने वाले हैं। महज 5 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। पिता की मृत्यु की वजह से पूरे परिवार पर आर्थिक संकट छा गया। आलम ये था कि खाने को पैसे नहीं थे। मजबूरन अब्दुल और उनके भाई-बहनों को अनाथ आश्रम का सहारा लेना पड़ा। इस दौरान अब्दुल की माता गुजर बसर के लिए घरों में काम किया करती थीं। 13 साल की उम्र से की मेहनत-मजदूरी (Success Story)
बढ़ती उम्र के साथ ही अब्दुल के कंधों पर भी घर चलाने की जिम्मेदारी आ गई। नतीजन 13 साल की उम्र से उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। अब्दुल ने कभी क्लीनर तो कभी होटल सप्लायर तो तभी फोन ऑपरेटर का काम किया। यही नहीं उन्होंने अखबार बांटने का काम भी किया और बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया। साथ-साथ पढ़ाई भी चलती रही।
कड़ी मेहनत के साथ अब्दुल ने पढ़ाई-लिखाई भी जारी रखा। उन्होंने थलासेरी के गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर ली। साल 1994 में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद प्रतियोगी परीक्षा दी और केरल के स्वास्थ्य विभाग में सरकारी कर्मचारी के तौर पर नौकरी करने लगे। बचपन अनाथ आश्रम और अभाव के बीच गुजरा था इसलिए नौकरी के दौरान समाज सेवा का कार्य करते रहे। अब्दुल नासर की इसी खूबी को देखते हुए सरकार ने उन्हें 2006 में राज्य सिविल सेवा के तहत डिप्टी कलेक्टर की भूमिका सौंप दी।
2017 में सरकार ने बना दिया आईएएस (Success Story)
मेहनत और लगन से व्यक्ति चांद पर पहुंच सकता है तो ये तो कलेक्टर का पद ही था। अब्दुल (Abdul Nasar Success Story) की कर्मठता को देखते हुए उन्हें वर्ष 2015 में केरल के टॉप डिप्टी कलेक्टर बना दिया गया। वहीं साल 2017 में सरकार ने उनका प्रमोशन आईएएस अधिकारी के पद पर कर दिया। पहले अब्दुल को केरल सरकार के आवास आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था और साल 2019 में उन्हें कोल्लम का जिला कलेक्टर बना दिया गया। इस तरह अब्दुल नासर बिना यूपीएससी सीएसई परीक्षा (UPSC CSE Exam) के आईएएस अधिकारी बन गए।