नए नियमों के तहत अब चार साल की स्नातक डिग्री वाले छात्र भी इस परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। संक्षेप में 3 साल के उपरांत विद्यार्थी के पास विकल्प रहेगा कि वह स्नातकोत्तर की तरफ जाना चाहता है कि अनुसंधान की तरफ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत बहु प्रवेश – बहु निर्गम (मल्टीप्ल एंट्री -मल्टीप्ल एक्जिस्ट) की सुविधा का लाभ भी विद्यार्थी को प्राप्त हो सकेगा। यदि विद्यार्थी 2 वर्ष के उपरांत पढ़ाई छोड़ देता है, तो उसे सर्टिफिकेट और फोर्थ सेम के बाद में पढ़ाई छोड़ देता है तो उसे डिप्लोमा प्राप्त होगा। सिक्स्थ सेम पूर्ण होने पर ही उसे स्नातक की उपाधि प्रदान की जा सकेगी, इस संपूर्ण योजना में मनोवैज्ञानिक दबाव को काम करते हुए ,विषयों के गंभीर अध्ययन एवं अनुसंधान की ओर आगे बढ़ाने की योजना है, विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों मे स्नातक के साथ ऑनर्स की उपाधि प्रदान की जाती है।
75 प्रतिशत या उसके बराबर के ग्रेड होना अनिवार्य
चार वर्षीय डिग्री के बाद पीएचडी करने के लिए यूजीसी ने कुछ शर्तें भी तय की है। एफवाईयूपी पूरा करने वाले या आठ सेमेस्टर पूरा करने के उपरांत ग्रेजुएशन की डिग्री लेने वाले छात्र इस नई व्यवस्था में मान्य होंगे। हालांकि चार वर्षीय डिग्री पूरी होने पर इन छात्रों के न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक होना अनिवार्य होगा। जहां अंकों की बजाय ग्रेड की व्यवस्था है, वहां भी 75 प्रतिशत अंकों के बराबर ग्रेड होना जरुरी होंगे। वही एससी, एसटी, ओबीसी, दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को यहां अंकों में कुछ छूट प्रदान की जा सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन से इस प्रयोग से भारतवर्ष समस्त विश्वविद्यालयों के शिक्षा में संतुल्यता हासिल कर लेगा। इसके साथ ही अभी विद्यार्थी बिना किसी उद्देश्य के प्रवेश ले लेते हैं। उसे पर भी अंकुश लगेगा और विद्यार्थी को अनुसंधान के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त करने का लक्ष्य उसके मन में प्रारंभ से ही आ जाएगा, जिससे अनुसंधान एवं नवाचार बढ़ेगा।