4 नवम्बर 1929 को बेंगलुरु में जन्मीं मानव कंप्यूटर के नाम से चर्चित शकुंतला देवी ने गणित के जटिल सवालों को बिना किसी मशीनी सहायता के हल करके दुनिया भर में डंका बजा दिया। 1977 में उन्होंने टेक्सास में 201 अंकों की संख्या का 23 वां रूट मात्र पचास सेकेंड में निकाल दिया। शकुंतला ने मौखिक हल कर दिया जबकि उस समय के सबसे तेज कंप्यूटर को यह हल निकालने में 62 सेकेंड लगे। 1980 में उन्होंने 13 अंकों वाली दो संख्याओं का गुणा मात्र 28 सेकेंड किया। 1995 में उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया।
9 जनवरी 1938 को चेन्नई में जन्मे रामानुजम ने अल्पायु में ही लोगों के बीच अपनी प्रतिभा की पहचान करवा दी। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के शिक्षक उनके प्रशंसक बन गए और एक स्वर में उन्हें गणित का अद्वितीय प्रतिभावान छात्र घोषित कर दिया। अलजेब्रिक ज्यामिती और नंबर थ्योरम में रामानुजम का उल्लेखनीय योगदान है। गणित के अलावा साहित्य व संगीत में भी उनकी अच्छी रूचि थी। रामानुजम सीजोफ्रेनिया के शिकार हो गए व अवसाद में ज्यादा मात्रा में दवा खाकर आत्महत्या कर ली।
कापरेकर 1905 में महाराष्ट्र में जन्मे। भले ही उनके पास कोई औपचारिक पोस्टग्रेजुएट डिग्री न रही हो लेकिन गणित जुड़े खेल तैयार करने में वे बड़े उस्ताद थे। अमरीकी विद्वान मारटिन ने साइंटिफिक अमरीकन्ज में मैथेमेटिकल गेम्स तैयार करने में उनकी महती भूमिका के लिए उनकी खूब सराहना की। नासिक में एक स्कूल शिक्षक की नौकरी करते हुए उन्होंने रेकरिंग दशमलव, मैजिक स्क्वैयर और नम्बर थ्योरी पर खूब रोचक जानकारियां लिखीं। उन्होंने ही कापरेकर कांस्टैन्ट और कापरेकर नंबर की खोज की।
ग्वालियर के एक महाराष्ट्रीयन परिवार में जन्मे नरेन्द्र कर्मकार को पोलिनोमियल एल्गोरिदम फॉर लाइनियर प्रोग्रामिंग: इंटीरियर प्वाइंट मैथर्ड की खोज के लिए जाना जाता है। लाइनियर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में पोलिनोमियल एल्गोरिद्म बेहद महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। कर्मकार की इस खोज के लिए उन्हें 2000 में पेरिस केनेलाकिस अवॉर्ड से नवाजा गया। उनके सम्मान में इस एल्गोरिद्म का नाम ही कर्मकार एल्गोरिद्मज रखा गया। इससे पहले 1972 में उन्हें गणित का नेशनल साइंस टैलेन्ट अवॉर्ड भी दिया गया था।