यह खास गुलाल सूखे फूलों (Gulal From Dry Flower) को इस्तेमाल करके बनाया जा रहा है, जिसके लिए तकनीक की मदद ली जा रही है। इसमें फूलों और पत्तियों को ड्राई होने के लिए छोड़ दिया जाता है, फिर उससे गुलाल बनाया जाता है। इस तरह से बने गुलाल त्वचा के लिए सेफ होंगे। इसे बनाने की ट्रेनिंग महिलाओं को भी दी जाएगी ताकि उनके बीच रोजगार के अवसर (Jobs For Women) बढ़ें।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लैब में फूलों और पत्तों को सुखाकर रंग बनाने की तकनीक पर विचार हो रहा है। इसके अलावा बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (Best Agriculture University) में भी कुछ इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस वर्ष होली (Holi 2024) में इन दोनों ही विश्वविद्यालय में इस तकनीक की मदद से गुलाल बनाए जाएंगे।
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दरअसल, फूलों के इस्तेमाल के बाद उन्हें फेंक दिया जाता है। फेंके हुए फूल सड़ जाते हैं, उनमें फंगस लग जाते हैं। साथ ही बदबू भी आने लगती है। इस तरह यह बीमारी और गंदगी का घर बन जाता है। इन बेकार हुए फूलों से गंदगी न फैले इस उद्देश्य से इनका इस्तेमाल गुलाल बनाने में किया जा रहा है।बता दें, इस साल ये गुलाल कम मात्रा में बनाए जाएंगे, जिस वजह से बाजार में उपलब्ध नहीं होंगे। इस साल होली के मौके पर ये गुलाल सिर्फ BHU के कर्मचारियों को उपलब्ध कराया जाएगा। BHU कर्मचारियों के लिए इसकी कीमत कम रखी जाएगी। अगले साल से होली के मौके पर इस गुलाल को बाजार में बेचा जाएगा।