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7 बार यूजीसी परीक्षा किया पास, 3 सरकारी नौकरी छोड़ी, अब शिष्यों के साथ पहुंच गए Mahakumbh, जानें आचार्य रुपेश झा की प्रेरणादायक कहानी

Acharya Rupesh Jha: आचार्य रुपेश झा का संबंध बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र से है। वे मधुबनी…

नई दिल्लीJan 15, 2025 / 06:14 pm

Anurag Animesh

Acharya Rupesh Jha

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Mahakumbh 2025: प्रयागराज में इस समय दिव्य और भव्य महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। इसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत अमृत स्नान के लिए पहुंच रहे हैं। महाकुंभ में ऐसे कई साधु-संत भी आए हैं, जो अपने अनोखे व्यक्तित्व और प्रेरणादायक जीवन के लिए चर्चित हैं। इन्हीं में से एक नाम है आचार्य रुपेश झा का, जिनकी कहानी बेहद खास और प्रेरणादायक है।
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Mahakumbh: शिक्षा और नौकरी छोड़ सनातन धर्म की सेवा


आचार्य रुपेश झा का जीवन संघर्ष और प्रेरणा का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने न केवल सात बार UGCऔर दो बार JRFf क्लियर किया, बल्कि तीन सरकारी नौकरियों को भी ठुकरा दिया। उनका कहना है कि इन नौकरियों में उनका मन नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने बिहार के मोतिहारी में एक गुरुकुल से जुड़ गए। जहां वो आपने ज्ञान को बांट रहे हैं। मोतिहारी के गुरुकुल में आचार्य रुपेश झा 125 बच्चों को संस्कृत और सनातन धर्म की शिक्षा दे रहे हैं। उनका लक्ष्य पूरे मिथिलांचल और बिहार में 108 गुरुकुल स्थापित करना है, जहां सनातन धर्म की परंपराओं और मूल्यों को सिखाया जा सके।
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Acharya Rupesh Jha: मिथिलांचल से प्रयागराज तक का सफर


आचार्य रुपेश झा का संबंध बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र से है। वे मधुबनी जिले के लक्ष्मीपति गुरुकुल में शिक्षा देते हैं। इस बार वे अपने 25 शिष्यों के साथ प्रयागराज के महाकुंभ पहुंचे हैं। उनका मानना है कि गंगा के तट पर बैठकर पूजा-अर्चना करना और सनातन धर्म के प्रसार में योगदान देना बहुत सौभाग्य की बात है।
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Acharya Rupesh Jha: शिक्षा और धर्म के प्रति समर्पण


आचार्य रुपेश ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई की है। उन्होंने कई बड़ी परीक्षाएं पास की और तीन सरकारी नौकरियां हासिल की, लेकिन उनका झुकाव हमेशा शिक्षा और धर्म के प्रति रहा है। यही कारण है कि उन्होंने गुरुकुल में बच्चों को पढ़ाने का रास्ता चुना।

Mahakumbh 2025: सनातन धर्म की जागरूकता के लिए संदेश


आचार्य रुपेश झा का कहना है कि हमें अपने धर्म के प्रति जागरूक रहना चाहिए। वर्तमान समय में एकजुटता और सनातन धर्म की परंपराओं को सहेजना बेहद जरुरी है। उनका मानना है कि केवल आध्यात्मिकता और संस्कारों के माध्यम से ही समाज को सही दिशा दी जा सकती है।

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