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मेल एवं पैसेंजर ट्रेनों से लेकर एसी क्लास तक
राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर ने सर्कुलर में कहा कि मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में स्लीपर क्लास के लिए यात्री किराए में दो पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की गई है। वहीं 3एसी, 2एसी और एसी प्रथम श्रेणी में चार पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की है। रेलवे ने पैसेंजर ट्रेनों के लिए भी किराए में बढ़ोतरी करते हुए एक पैसा प्रति किलोमिटर की वृद्धि की है।
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इनमें कोई बदलाव नहीं
वहीं राजधानी, शताब्दी, हमसफर, वंदे भारत, दुरंतो, राज्य रानी, महानमा, गतिमान, गरीबरथ, जन शताब्दी, युवा और सुविधा एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेनों के किराए को भी अधिसूचित किराया तालिका के अनुसार उपरोक्त प्रस्तावित वृद्धि की सीमा तक संशोधित किया जाएगा। सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि आरक्षण शुल्क, सुपरफास्ट सरचार्ज आदि में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। साथ ही 1 जनवरी 2020 से पहले बुक किए गए टिकटों पर किराए का अंतर यात्रियों से नहीं लिया जाएगा।
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पटना तक 20 रुपए प्रति अधिक किराया
बजट में सरकार ने रेल किराये में वृद्धि नहीं की थी। बढ़े हुए किराए के मुताबिक, अब राजधानी ट्रेनों में यात्रा करने वाले मुसाफिरों को 60 रुपए अधिक देने होंगे, जबकि शताब्दी में 15 से 20 रुपए अधिक देने होंगे। मेल और एक्सप्रेस ट्रेन में यात्रा करने पर 55 से 60 रुपए अतिरिक्त देने होंगे। स्लीपर क्लास में यात्री किराए में वृद्धि का मतलब है कि नई दिल्ली से पटना तक की 997 किलोमीटर की दूरी के लिए यात्रियों को अब प्रति टिकट लगभग 20 रुपए का अतरिक्त भुगतान करना होगा। एसी कोचों के लिए यात्रियों को समान दूरी के लिए 40 रुपए अधिक चुकाने होंगे।
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नहीं हो पा रही है कमाईनियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रेलवे की कमाई 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। रेलवे का परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 फीसदी पर पहुंच गया है, जिसका मतलब यह है कि रेलवे को 100 रुपए कमाने के लिए 98.44 रुपए खर्च करने पड़े हैं। परिचालन अनुपात के आंकड़े से रेलवे की हालत को सहज ही समझा जा सकता है और सीधा-सा अर्थ है कि अपने तमाम संसाधनों पर रेलवे को दो फीसदी की भी कमाई नहीं हो पा रही है।
रेलवे ने कई सालों से यात्री किराये में इजाफा नहीं किया था। पिछले साल संसद की एक समिति ने सिफारिश की थी कि रेलवे को निश्चित अवधि में रेल यात्री किराए की समीक्षा करनी चाहिए। समिति ने किराए को व्यवहारिक बनाने की भी बात कही, ताकि उससे रेलवे की आय बढ़ाई जा सके। यह सुझाव यात्री सेवाओं से अर्जित होने वाली रकम में कमी आने को देखते हुए दिया गया था।