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अर्थव्‍यवस्‍था

दाल निर्यातक देशों ने डब्ल्यूटीओ में उठाया भारत के दाल आयात प्रतिबंध पर सवाल

किसानों को उचित दाम दिलाने के लिए सरकार ने लगाया था आयात पर प्रतिबंध
कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमरीका जैसे देशों ने विश्व व्यापार संगठन में सवाल

Oct 31, 2019 / 10:17 am

manish ranjan

Pulse Import

Focus on Pulses Crops

नई दिल्ली। विगत वर्षो में देश में दालों का बंपर उत्पादन होने के बाद सरकार ने किसानों को उचित भाव दिलाने के मकसद से प्रमुख दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगा दिया है, जिसको लेकर कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे दालों के प्रमुख निर्यातक देशों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में सवाल उठाया है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।

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कारोबारियों ने बताया कि भारत में सभी दालों की कुल सालाना खपत तकरीबन 240 लाख टन है और कुछ साल पहले तक भारत भारी मात्रा में दाल का आयात करता था, लेकिन बीते तीन साल से देश में दालों के उत्पादन में भारी इजाफा हुआ है, जिसके कारण सरकार ने कुछ दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगा दिया है और कुछ के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया है।

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चालू वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने तुअर (अरहर) का आयात सिर्फ चार लाख टन करने का कोटा तय किया है। इसी प्रकार उड़द 1.5 लाख टन, मूंग 1.5 लाख टन और मटर 1.5 लाख टन आयात करने का कोटा निर्धारित किया गया है। वहीं, वर्तमान में चना पर 60 फीसदी आयात शुल्क है और मसूर पर 30 फीसदी आयात शुल्क लागू है, जिससे इन दोनों दलहनों के आयात में विगत वर्षो में काफी कमी आई है। हालांकि कारोबारी अनुमान के अनुसार देश में इस साल पांच लाख टन मसूर का आयात हुआ है।

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इंडिया पल्सेस एंड ग्रेंस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष विमल कोठारी ने बताया कि भारत के बाद कनाडा दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक है और वहां मुख्य रूप से भारत को निर्यात करने के लिए ही दलहन फसलें उगाई जाती है। यही बात आस्ट्रेलिया के साथ है, इसलिए भारत में दाल के आयात पर प्रतिबंध का मसला इन देशों ने डब्ल्यूटीओ के पास उठाया है।

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कोठारी ने बताया कि विगत वर्षो में भारत का दाल आयात 60 लाख टन तक पहुंच गया था जोकि अब घटकर करीब 15-20 लाख रह गया है। उन्होंने कहा, “सरकार के प्रयासों से दालों के उत्पादन-खपत के मामले में भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है, इसलिए आयात पर प्रतिबंध किसानों के उत्साहवर्धन और उन्हें फसलों का वाजिब दाम दिलान के लिए उचित है। हालांकि इस साल अत्यधिक वारिश के कारण मूंग और उड़द की कुछ फसलें खराब हुई जिसकी पूर्ति आयात से करने की जरूरत होगी।”

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कारोबारी सूत्रों ने बताया कि डब्ल्यूटीओ की कृषि मामलों की समिति की इस सप्ताह हो रही बैठक में कनाडा, आस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका द्वारा उठाए जाने वाले सवालों पर विचार-विमर्श हो सकता है। दहलन बाजार विशेषज्ञ मुंबई के अमित शुक्ला ने कहा कि भारत में पिछले साल दाल का उत्पादन खपत के मुकाबले कम है, लेकिन 2017-18 में बंपर उत्पादन हुआ था, जिसके कारण स्टॉक की कमी नहीं है।

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गौरतलब है कि वर्ष 2014-15 और 2015-16 के दौरान लगातार दो साल देश में दहलनों का उत्पादन क्रमश: 171.5 लाख टन और 163.2 लाख टन था। इस प्रकार खपत के मुकाबले उत्पादन कम होने से देश में विभिन्न दालों के भाव आसमान छू गए थे जब अरहर 200 रुपये प्रति किलो बिकने लगा था।

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दलहनों का भाव ऊंचा होने से किसानों ने इनकी खेती में दिलचस्पी दिखाई और देश में दहलनों का उत्पादन 2016-17 में 231.3 लाख टन हुआ जबकि 2017-18 में 254.2 लाख टन तक पहुंच गया। बीते फसल वर्ष 2018-19 में देश में दलहनों का उत्पादन 234 लाख टन रहा। ये आंकड़े केंद्रीय कृषि मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।

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