वोटर्स को लुभाने के लिए सरकार के पास अंतिम मौका
आगामी सरकार को हालांकि सत्ता संभालने के बाद अपना पूर्ण बजट पेश करते समय अंतरिम बजट के आकलन में परिवर्तन की स्वतंत्रता होगी। अब तक देश में कार्यकाल समाप्त होने वाली सरकारों ने अंतरिम बजट में बड़ी नीतिगत फैसले लेने या कराधान के प्रस्ताव करने से दूर रहने की परंपरा का पालन किया है। विगत वर्षो पर नजर डालें तो 2000 के बाद तीन बार अंतरिम बजट पेश किए गए हैं। एक मार्केट रिसर्च कंपनी का कहना है कि यह कवायद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पास करों और परियोजनाओं पर खर्च के माध्यम से समाज के एक बड़े वर्ग को खुश करने का अंतिम अवसर हो सकती है।
सरकार के पास है मौका
पिछले सप्ताह जेएम फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में सूचीबद्ध फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के संशोधित फार्मूले के अनुसार, फसलों की खरीद में बढ़ोतरी के वादे में विफल होने के बाद एक फरवरी 2019 को सरकार के लिए अंतिम अवसर होगा जब वह लेखानुदान के बजाए अंतरिम बजट की घोषणाओं के माध्यम से समाज के एक बड़े वर्ग को खुश कर सकती है, जिसमें करों में बदलाव और परियोजनाओं के खर्च में परिवर्तन किया जा सकता है। नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि अगला आम चुनाव अप्रैल-मई में होनेवाला है, इसलिए सरकार छोटे कारोबारी वर्ग को सस्ते कर्ज मुहैया करवाने एवं मुफ्त दुर्घटना बीमा प्रदान करने पर विचार कर रही है। नवंबर 2016 में नोटबंदी से यह वर्ग प्रभावित हुआ है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण का भी मसला
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद ने छोटे कारोबार के लिए छूट की सीमा 20 लाख रुपये से दोगुना करके 40 लाख रुपये कर दी है। जीएसटी कंपोजीशन स्कीम के तहत पात्रता की सीमा एक करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.5 करोड़ रुपये कर दी गई है, जोकि एक अप्रैल 2019-20 से प्रभावी होगी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि प्रमुख नीतिगत प्रस्तावों के साथ अंतरिम बजट पेश करना अनैतिक होगा, इसके अलावा बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का भी मसला है जिसके माध्यम से सरकार अपना नजरिया पेश करती है।
राज्यों के पास अपने बजट के माध्यम से लोकलुभावन घोषणाएं करने की आजादी
उन्होंने कहा, “अगर बजट में लोकलुभावन योजनाओं का प्रस्ताव किया जाएगा तो दूसरी पार्टी के सत्ता में आने पर अगली सरकार के लिए उसे वापस लेना कठिन हो जाएगा।” प्रख्यात अर्थशास्त्री अशोक देसाई ने कहा कि कार्यकाल पूरा करने वाली (आउटोगोइंग) सरकार किसी प्रकार का कर प्रस्ताव या नीतिगत बदलाव नहीं कर सकती है। देसाई 1991-93 के दौरान वित्त मंत्रालय के मुख्य सलाहकार थे। देसाई ने कहा, “चुनाव नजदीक होने से सरकार यह कर सकती है कि मौजूदा योजनाओं के खर्च में बढ़ोतरी कर देगी, लेकिन नई योजनाओं की घोषणा नहीं की जा सकती है।” उन्होंने कहा, “इस स्थिति में राज्यों के पास अपने बजट के माध्यम से लोकलुभावन योजनाओं की घोषणाएं करने की आजादी है।” अर्थशास्त्री नागेश कुमार को लगता है कि ग्रामीण क्षेत्र और छोटे कारोबारों के लिए खर्च में वृद्धि का प्रस्ताव किया जा सकता है ‘जोकि बुरा भी नहीं है’ क्योंकि इससे उपभोग मांग बढ़ेगी, खासकर तब जब निजी निवेश में सुस्ती का माहौल है।
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