वास्तव में भारत समेत कुछ देशों को अमरीका ने विकासशील देशों की सूची से निकालकर बाहर कर दिया है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि भारत समेत इन तमाम देशों को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस यानी जीएसपी का दर्जा ना दिया जा सके। यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रजेंटेटिव ने तो यहां तक कह दिया है कि जिन देशों का वैश्विक व्यापार में 0.5 फीसदी से ज्यादा हिस्सा होता है ऐसे देशों को काउंटरवेलिंग ड्यूटी के नियमों के तहत विकसित देशों की श्रेणी में रखा जाता है। भारत भी ऐसे ही देशों की सूची में शामिल हो चुका है। मतलब साफ है कि देश अब विकसित राष्ट्र बन चुका है।
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भारत दौरे से पहले भारत को ट्रंप का झटका या फिर तोहफा
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 24 और 25 फरवरी को भारत दौरे पर होंगे। उससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति ने ऐसा दांव चल दिया है कि अब यह समझ नहीं आ रहा कि यह भारत को झटका लगा है या फिर तोहफा मिला है। अगर भारत को जीएसपी में वापस नहीं आ पाएगा तो उसे 45 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा। वहीं भारत विकसित देशों की श्रेणी में आता है तो दुनिया की इकोनॉमी में उसकी जड़े और ज्यादा मजबूत होंगी। वैसे मजबूत अभी भी हैं।
इसका उदाहरण दावोस में आईएमएफ चीफ गीता गोपीनाथ के उस बयान से मिलता है, जिसमें कहा गया था कि भारत की गिरती इकोनॉमी का असर वैश्विक इकोनॉमी में भी देखने को मिलता है। ऐसे में भारत की इकोनॉमी दर का उठना वैश्विक इकोनॉमी के लिए बेहद जरूरी है।
क्या वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी ही सही पैमाना है
यूएसटीआर के कुछ आंकड़ों पर नजर दौड़ाते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर विकसित देश घोषित करने का पैमाना वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी क्या वाकई सही है। यूएसटीआर का मानना है कि जिन देशों का वल्र्ड ट्रेड में हिस्सा 0.5 फीसदी या उससे अधिक है, यूएसटीआर उन्हें अमरीकी सीवीडी नियम के लिए विकसित देश मानती है।
यूएसटीआर आंकड़ों के अनुसार 2018 में भारत का ग्लोबल एक्सपोर्ट में 1.67 फीसदी और ग्लोबल इंपोर्ट में 2.57 फीसदी हिस्सा था। जानकारों की मानें तो अमरीका ने अपने फायदे के लिए इस कदम को उठाया है। बाकी भारत की जीडीपी, बेरोजगारी और महंगाई जैसे नंबर्स भी किसी देश को विकसित, विकासशील और अविकसित देशों की श्रेणी में रखने में मायने रखते हैं।
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भारत के एक्सपोर्ट को लगेगा झटका
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया के अनुसार अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप हर देश के साथ आर्थिक मोर्चे पर ऐसे डिसिजन ले रहे हैं, जिससे अमरीका की इकोनॉमी को फायदा हो। वहीं दूसरी ओर अगर अमरीका ऐसा नहीं करता तो ट्रंप दौरे के दौरान भारत ट्रेड डील में जीएसपी की डिमांड करता।
अमरीका और यूएसटीआर के इस बयान के बाद से भारत सरकार जीएसपी की डिमांड नहीं कर पाएगा। उन्होंने आगे कहा कि अमरीका के इस कदम से भारत को नुकसान होगा। एक्सपोर्ट में गिरावट आने की भी संभावना है। जीएसपी से भारत को अमरीका में लगने वाले टैक्स से राहत मिलती थी। जिसकी वजह से अमरीका में भारत का सामान सस्ता होता था और भारतीय साामान की डिमांड भी रहती थी।
करीब 40 हजार करोड़ की वस्तुओं पर लगती थी जीएसपी
भारत की ओर से अमरीका में एक्सपोर्ट होने वाले सामान में करीब 40 हजार करोड़ के सामान पर ही जीएसपी की सुविधा लागू होती थी। अमरीका की ओर से मिलने वाले जीएसपी पाने वाला भारत दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक था। ऑफिस ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव की वेबसाइट्स https://ustr.gov/countries-regions/south-central-asia/india के आंकड़ों के अनुसार दोनों देशों के बीच काफी व्यापार होता है।
दोनों देशों के बीच वर्ष 2017 के हिसाब से 126.2 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है। अगर इसे भारतीय रुपयों के हिसाब से देखें तो 8.9 लाख करोड़ रुपए के आसपास बन रहे हैं। वहीं इसमें भारत की भागेदारी 76.7 बिलियन डॉलर यानि 5.43 लाख करोड़ रुपए की है। वहीं अमरीका की हिस्सेदारी 49.4 बिलियन डॉलर यानि 3.5 लाख करोड़ रुपए की है।