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19 हजार से करोड़ से ज्यादा की नेटबंदी
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल राजन मैथ्यूज के अनुसार साल 2012 से 2017 के बीच में इंटरनेट बंदी लगातार देखने को मिल रही है। जिसका असर देश की इकोनॉमी में देखने को मिल रहा है। आंकड़ों के हिसाब से उन्होंने इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस हवाले से जानकारी देते बताया है कि बीते पांच सालों में 16 हजार से ज्यादा इंटरनेट बंद रहा है। जिसकी वजह से देश की इकोनॉमी को 3.04 बिलियन डॉलर यानी करीब 19,435 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
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8 साल में 382 बार नेटबंदी
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के आंकड़ों की मानें तो 2012 के बाद से देश में 382 बार इंटरनेट बंद हुआ है। बात 2012 की ही करें तो तो सिर्फ तीन बार नेटबंदी हुई थी। जबकि साल 2018 में सबसे ज्यादा 134 बार नेटबंदी देखने को मिलीह थी। अगर बात 2020 की करें तो 4 बार इंटरनेट शटडाउन देखने को मिला है। 12,615 घंटे के मोबाइल इंटरनेट शटडाउन की वजह से 15,151 करोड़ का नुकसान शामिल है। वहीं 3,700 घंटे के मोबाइल और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट बंद होने से इकोनॉमी को 4,337 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इंटरनेट शटडाउन का मतलब किसी एक इलाके या शहर या लोकेशन पर इंटरनेट को बंद कर देना है। सरकारें ये फैसला दंगे और उपद्रव को कंट्रोल करने के लिए लेती हैं।
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कश्मीर में सबसे ज्यादा
नेटबंदी सबसे ज्यादा कश्मीर में देखने को मिली है। बीते साल 4 अगस्त 2019 से जारी कश्मीर की नेटबंदी दुनिया में किसी भी लोकतांत्रिक देश की सबसे बड़ी है। यह फैसला 5 अगस्त 2019 को सदन में सरकार ने आर्टिकल 370 को हटाने के बाद लिया गया था। इससे पहले 2016 में भी जम्मू-कश्मीर में 133 दिन तक नेटबंदी की गई थी। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में 100 दिनों तक इंटरनेट बंद रहा। यहां पर गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग में हिंसक घटनाएं होने के बाद यह फैसला लिया गया था।