इस वर्ष 9 वीं में जो बच्चे पहुंचे है, उनका शिक्षा का स्तर 7 वीं तक का भी नहीं है। शिक्षकों के मुताबिक सातवीं और आठवीं कक्षा में वे कोविड प्रमोशन से पास हो गए। वही आरटीई के तहत 8 वीं तक सभी बच्चों को पास करना अनिवार्य है। ऐसे में बच्चों के गणित और अंग्रेजी का लेवल काफी खराब है। उन्हें 9 वीं के कोर्स से पहले सातवीं और आठवीं की पढ़ाई करानी होगी। ऐसा ही हाल 11 वीं का है। जिसमें इन बच्चों ने भी 9 वीं और 10 वीं प्रमोशन में घर बैठे परीक्षा देकर पास कर ली,लेकिन 11 में विषय चुनने के बाद उन्हें अब कुछ समझ नहीं आ रहा और ऑफलाइन एग्जाम में वे आंसरशीट कोरी तक छोड़ आए।
विभाग के मुताबिक बोर्ड कक्षाओं में शिक्षकों और बच्चों दोनों को ही ज्यादा मेहनत करनी होगी। हालांकि कोर्स कुछ कम हुआ है,उसके बावजूद भी जिले के पुराने रिजल्ट को मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इसके लिए स्कूलों के पास मात्र तीन महीने का समय है। जिसमें उन्हें वार्षिक परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ कोर्स भी पूरा कराना है। प्रवास सिंह बघेल, जिला शिक्षा अधिकारी दुर्ग ने बताया कि कोविड की वजह स्कूल लंबे समय तक बंद रहे। इस वजह से बच्चों की पढ़ाई का स्तर काफी नीचे चला गया है। अब स्कूल शुरू होने के बाद ऐसे कमजोर बच्चे जिनका तिमाही में अच्छा परफार्मेस नहीं है, उनके लिए आरोहण की विशेष कक्षाएं चलाई जाएंगी।
9 वीं का परिणाम स्कूल प्रतिशत
6 स्कूल 70 से 100 फीसदी
10 स्कूल 50 से 69 फीसदी
21 स्कूल 40 से 49 फीसदी
32 स्कूल 30 से 39 फीसदी
44 स्कूल 20 से 29 फीसदी
40 स्कूल 10 से 19 फीसदी
8 स्कूल 0 से 9 फीसदी
स्कूल प्रतिशत
6 स्कूल 70 से 100 फीसदी
18 स्कूल 50 से 69 फीसदी 25 स्कूल 40 से 49 फीसदी
29 स्कूल 30 से 39 फीसदी
44 स्कूल 20 से 29 फीसदी
37 स्कूल 10 से 19फीसदी
स्कूल प्रतिशत
3 स्कूल 70 से 100 फीसदी
9 स्कूल 50 से 69 फीसदी
14 स्कूल 40 से 49 फीसदी
35 स्कूल 30 से 39 फीसदी
15 स्कूल 20 से 29 फीसदी
31 स्कूल 10 से 19 फीसदी
8 स्कूल 0 से 9 फीसदी
स्कूल प्रतिशत
9 स्कूल 70 से 100 फीसदी
33 स्कूल 50 से 69 फीसदी
28 स्कूल 40 से 49 फीसदी
27 स्कूल 30 से 39 फीसदी
18 स्कूल 20 से 29 फीसदी
3 स्कूल 10 से 19 फीसदी
एक भी नहीं 0 से 9 फीसदी