आरोपी प्रिंसिपल रमेश कटारा ने पत्रावलियों में अंकित पूछताछ नोट में बताया कि प्रिंसिपल के तौर पर 2018 में नियुक्त हुआ था। नियुक्ति के बाद अपने मोबाइल में पोर्न वीडियो देखना शुरू किया। जिसके बाद बच्चियों के साथ गलत बर्ताव किया। स्कूल में स्टॉफ होने के खातिर मौका नहीं मिलने पर एक दिन एक छात्रा को पौधों में पानी पिलाने के नाम पर स्कूल में अवकाश के बाद भी रोक दिया एवं गलत हरकत की। इसके बाद उसके हाथों में दस रुपए देकर उसको घर के लिए रवाना कर दिया।
ऐसे बढ़ती गई प्रिंसिपल की हिम्मत
स्कूली छात्रा के घर जाने के बाद अपने परिजनों को इस बारे में नहीँ बताने पर प्रिंसिपल की हिम्मत बढ़ने लगी और उसने धीर-धीरे करके अन्य छात्राओं को भी स्कूल अवकाश के बाद रोकने लगा और उनको कमरे में ले जाकर कुकृत्य करने लगा। साथ ही इसकी जानकारी घर पर देने पर तालाब में फेंकने की धमकी भी देता था। इससे बच्चियां डर जाती और अपने घर जाकर कुछ नही कहती थी। पकड़े जाने के डर से मोबाइल से फोटो हटाए
पत्रावली में बताया कि प्रिंसिपल ने मोबाइल से फोटो हटा दिए थे। इस पर पुलिस ने जांच के दौरान मोबाइल जब्त किया और विधि विज्ञान प्रयोगशाला जयपुर को वह मोबाइल भेजा था। प्रयोगशाला ने मोबाइल में डिलीट किए फोटो-वीडियो की सीडी पुलिस को उपलब्ध कराई। वहीं, न्यायालय में मेडिकल बोर्ड के गठन में शामिल चिकित्सकों ने पीडि़ताओं के साथ कुकृत्य नही होने के बयान दिए थे। लेकिन न्यायालय ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला से प्रस्तुत फोटो व पीडि़ताओं व परिजनों के बयान व अन्य साक्ष्य के आधार पर संस्था प्रधान को कटारा को सजा हुई।
बच्चियों को इंसाफ दिलाने के लिए फ्री लड़ा केस
अधिवक्ता गला पटेल व जितेंद्र पण्ड्या ने बताया कि संस्थाप्रधान ने शिक्षा के मंदिर में सात से 11 साल की सात बच्चियों के साथ कुकृत्य किया था। उन सभी पीड़ित बच्चियों को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने यह केस निशुल्क लड़ा है। अधिवक्ता पण्ड्या ने बताया कि यह केस एक नहीं था। इसमें सात पीडि़ताएं थी। इसलिए यह एक केस सात केस के बराबर था। वहीं, अधिवक्ता ने यह भी बताया कि इस मामले में अभियुक्त पक्ष ने उक्त मामले को ट्रांसफर पीटिशन व रिवीजन याचिका हाईकोर्ट जोधपुर में पेश की थी। इस पर वे अपने खर्चे पर जोधपुर गए और वहां पर पैरवी कर दोनों पिटीशन खारिज करवाकर स्थानीय न्यायालय से शीघ्र मामले के निस्तारण का सख्त आदेश जारी कराया।