ऐसे में सालभर दरवाजों में बंद रहने वाले गणपति को गणेश चतुर्थी के दिन भी भक्तों का इंतजार रहा। डूंगरपुर की बसावट के समय से नगर की रक्षा के लिए कानेरा पोल के बाहर दोनों तरफ दीवार में गणपति की प्रतिमाएं स्थापित की गई थी। आजादी के बाद यह मंदिर देवस्थान विभाग के प्रत्यक्ष प्रभार में आ गया। शुरू में तो इनकी सेवा पूजा नियमित रूप से होती रही। बाद में यहां दुकानें खुल गई और गणपति दरवाजे में बंद रहने लगे। वर्तमान में दोनों ही गणपति मंदिरों में दुकान चल रही है। दुकानदार ही सुबह शाम गणपति की पूजा करते हैं।
भक्तों पर आश्रित प्रथम पूज्य डूंगरपुर शहर के गणेश मंदिरों में उत्सवी माहौल दिखाई दिया। वहीं देवस्थान विभाग के गणेश मंदिरों में उत्सव के लिए भक्तों का मुहं ताकना पड़ा। विभाग की तरफ से गणेश चतुर्थी पर शहर के किसी भी गणेश मंदिर को बजट स्वीकृत नहीं हैं। इसके चलते हर साल गणेश चतुर्थी उत्सव स्थानीय लोगों के सहयोग से मनाना पड़ता है। इन मंदिरों में स्थानीय लोग व मंडल ही उत्सव मनाने व सजावट की व्यवस्था करते हैं।
दूसरी ओर विभाग राजधानी में सालाना करोड़ों रुपए आमदनी वाले ट्रस्ट के गणेश मंदिरों को उत्सव के लिए एक-एक लाख रुपए का बजट देता है। देवस्थान विभाग गणेश चतुर्थी उत्सव के लिए जयपुर के मोती डूंगरी गणेश मंदिर व रणथंभौर के त्रिनेत्र गणेश मेले के लिए एक एक लाख रुपए की राशि प्रदान करता है। जबकि विभाग अपने ही प्रत्यक्ष प्रभार के दर्जीवाड़ा स्थित जसवंत गणेश, पातेला तालाब स्थित मुरला गणेश, पुरानी मंडी स्थित गणपति व नगर परिषद के निकट लाभ गणपति के लिए प्रसाद, माला व पोशाक के लिए भी कोई राशि आवंटित नहीं की।