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डूंगरपुर

दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षण और संवर्धन की मुहिम शुरू

बीज संग्रहण कर तैयार करेंगे पौध

डूंगरपुरMar 16, 2022 / 11:48 am

milan Kumar sharma

दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षण और संवर्धन की मुहिम शुरू

दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षण और संवर्धन की मुहिम शुरू

डूंगरपुर. दुर्लभ पीले पलाश के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर राजस्थान पत्रिका की ओर से शुरू की गई मुहिम धीरे-धीरे रंग लाती नजर आ रही है। पत्रिका एवं वनप्रेमियों के आह्वान पर पीले पलाश के साथ ही वागड़ सहित प्रदेश के दुर्लभ एवं औषधीय व पर्यावरण के लिहाज से अतिमहत्वपूर्ण पेड़-पौधों के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर वन विभाग विशेष कार्ययोजना तैयार करने जा रहा है। इसके तहत वन विभाग की ओर से आगामी वर्षा ऋतु में ऐसे वृक्षों के सीड्स संग्रहण कर नर्सरियों में पौध तैयार कर अधिक से अधिक वितरण किया जाएगा। साथ ही राजकीय एवं गैर राजकीय विद्यालयों में भी इन पौधों को विशेष रुप से बांटा जाएगा।
वन विभाग के उपवन संरक्षक सुपोंग शशी ने पत्रिका की मुहिम की सराहना करते हुए कहा कि वन विभाग की ओर से डूंगरपुर-बांसवाड़ा मार्ग पर स्थित सरकण घाटी स्थित पीले पलाश को संरक्षित किया जाएगा। साथ ही डूंगरपुर में स्थित अन्य वनस्पतियां जो पूर्व में यहां हुआ करती थी। लेकिन, अब वह विलुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसी वनस्पतियों एवं वृक्षों की सूची तैयार करवाएंगे। साथ ही आगामी वर्षा ऋतु में अधिक से अधिक पौध तैयार कर बांटे जाएंगे। इस संबंध में समस्त वनपाल, वनरक्षकों के साथ ही वनप्रेमियों तथा स्थानीय लोगों की मदद ली जाएगी। उपवन संरक्षक शशी ने बताया कि इस वर्ष जिले की सभी नर्सरी में मुख्यत: पीत पलाश के पौध तैयार करवाए जाएंगे। यहां विद्यालयों को सरकारी प्रावधानों अनुसार पौध उपलब्ध करवाए जाएंगे।

पलाश की जड़ से बनाते थे रहट की रस्सी
वनप्रेमी तथा खेल छात्रावास तीजवड़ के अधीक्षक राजेश परमार पलाश सहित देसी वनस्पतियों के पौध स्वयं के स्तर पर तैयार कर बांट रहे हैं। परमार ने बताया कि गत वर्ष भी उन्होंने पीले एवं लाल पलाश के सीड्स संग्रहण कर पौध तैयार कर बांटे थे। इस वर्ष भी पत्रिका के आह्वान पर वह मुख्यत: पीले पलाश के सीड्स संग्रहण करेंगेे तथा कम से कम 50 पौध तैयार कर पीत वृक्ष को पल्लिवत करने वालों को नि:शुल्क देंगे। परमार ने बताया कि पलाश की जड़ों से पूर्व में रस्सी बनाते थे। यह रस्सी रहट में काम में लेते थे। लेकिन, अब रहट ही कम हो गए हैं। ऐसे में पलाश की रस्सी की भी प्रासंगिकता कम हो गई।

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