दुमका। भारत देश की शान का प्रतीक तिरंगे झंडे के लिए हर दिल, हर धड़कन में सम्मान है। तिरंगे के लिए जज्बा भी हमें आए दिन देखने को मिलता रहता है, लेकिन झारखंड के आदिवासी समुदाय का एक ऐसा भी परिवार है जो औरों से अलग है। ताना भगत के परिवार के सभी सदस्य सुबह अपने तिरंगे की पूजा पूरे विधि विधान से करते हैं।
यह परिवार पुष्पांजलि के साथ पूजा करता हैं। तिरंगा की पूजा के समय परिवार के सभी सदस्य बच्चे, बड़े, बूढ़े और महिलाएं साथ होते हैं। इनके घरों में सालों भर तिरंगा झंडा लहराता रहता है। चतरा जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टंडवा प्रखंड के सिदपा गांव में जंगल और पहाड़ियों के निकट आदिवासी ताना भगतों का परिवार रहता है।
तिरंगे की पूजा के बारे में रामे ताना भगत ने बताया कि हम लोग प्रत्येक दिन धरती मां के साथ-साथ तिरंगा की भी पूजा करते हैं। प्रत्येक दिन तिरंगा झंडा के साथ प्रभात फेरी भी निकाली जाती है। जबकि टाना भगत परिवार के महिला सदस्यों देवंती ताना भागत का कहना है कि हम लोग झंडा की पूजा वर्षों से कर रहे हैं और पूर्वजों भी तिरंगे झंडे का पूजा करते हैं।
क्या यह तिरंगे की पूजा के पीछे की कहानी
बताया जाता है कि ताना भगतों के तिरंगे से प्रेम की कहानी आजादी के तीन दशक पहले से शुरू होती है। उनके समुदाय के जतरा टाना भगत ने मांस मदिरा के खिलाफ सामाजिक चेतना विकसित की थी। इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आन्दोलन का बिगुल फूंका। जल, जंगल और जमीन पर हमारा अधिकार है। उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी तो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में बंद कर दिया।
डेढ़ साल जेल में बंद रहने के बाद अंग्रेजों के अत्याचार सह सहकर उनकी मुत्यु हो गई। इसके बाद भी उनका आन्दोलन थमा नहीं, बल्कि उनके पूरे समाज का आन्दोलन बन गया। आजादी के इतने सालों बाद भी इन पर गांधी जी का प्रभाव इन आदिवासियों पर कायम है। ये खादी के कपडे़ पहनते हैं और सिर पर गांधी टोपी लगाते हैं।
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