इस थैरेपी में नई दवाएं सीधे कैंसर की कोशिकाओं पर असर डालकर उन्हें निष्क्रिय कर देती हैं।सामान्यत: शरीर की कोशिकाएं नियमित रूप से विभाजित होती हैं व अपनी आयु पूरी होने पर वे नष्ट भी होती रहती हैं जिससे शरीर में समस्थिति बनी रहती है। लेकिन जब इस व्यवस्था प्रणाली का नियंत्रण खत्म हो जाता है तो कोशिकाएं अव्यवस्थित रूप से विभाजित होना शुरू कर देती हैं और ये नष्ट भी नहीं होतीं। यही कोशिकाएं धीरे-धीरे ट्यूमर (गांठ) का निर्माण करती हैं।
आम धारणा के अनुसार कैंसर सिर्फ आनुवांशिक रोग है लेकिन ऐसा नहीं है। लगभग 10 प्रतिशत कैंसर ही आनुवांशिक होते हैं शेष रोग अन्य कारणों की वजह से होते हैं। जिनमें धूम्रपान, अत्यधिक शराब पीना, गुटखा या तंबाकू की लत, मोटापा, व्यायाम न करना, अधिक धूप में रहना, कुछ वायरल संक्रमण (जैसे कि ह्यूमन पेपिलोमा वायरस, एचआईवी, हेपेटाइटिस), जल और वायु प्रदूषण आदि मुख्य हैं।
वैसे तो कैंसर के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते जिन्हें देखकर इस रोग का पता लगाया जा सके लेकिन कुछ सामान्य तकलीफें हैं जो किसी भी तरह के कैंसर में हो सकते हैं। यदि इस तरह के कुछ लक्षण नजर आते हैं तो आप अपने फैमिली फिजिशियन से संपर्क करें:-
– भूख न लगना।
– बुखार, कंपकपी या रात में पसीना आना।
– शरीर के किसी अंग में दर्द होना।
– लंबी खांसी, सांस फूलना या बलगम में खून।
– मल या मूत्र के साथ रक्तस्राव।
– शरीर के किसी हिस्से में गांठ/घाव होना।
हालांकि इस रोग से पूरी तरह बचाव का कोई उपाय तो नहीं है लेकिन जीवनशैली में बदलाव कर कैंसर के जोखिम को कम किया जा सकता है।जैसें :-
– धूम्रपान, शराब व गुटखे आदि से बचें।
– नियमित व्यायाम करें और वजन को नियंत्रित रखें।
– हरी सब्जियां, फल, दुग्ध उत्पादों का अधिक सेवन करें व मांस आदि से परहेज करें।
– अत्यधिक धूप के संपर्क में आने से बचें।
– हेपेटाइटिस-बी और ह्यूमन पेपिलोमा वायरस की वैक्सीन लगवाएं।
– असुरक्षित यौन संबंध न बनाएं।
– डॉक्टर की सलाह से साल में एक बार आवश्यक जांचें जरूर कराएं।
स्क्रीनिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कुछ जांचों से कैंसर का शुरुआती स्टेज में ही पता लगाकर इलाज आसानी से किया जा सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर : मैमोग्राफी व डॉक्टरी जांच।
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर : पैप स्मीयर टेस्ट।
बड़ी आंत का कैंसर : कोलोनो स्कोपी व स्टूल टेस्ट।
प्रोस्टेट कैंसर : ब्लड की जांचें और डॉक्टरी परीक्षण।
कैंसर की गांठ की जांच सुई द्वारा उसका सैम्पल या गांठ का एक छोटा टुकड़ा लेकर की जाती है ताकि उसका प्रकार पता लग सके। इसके अलावा आजकल ब्रेस्ट, फेफड़े व लसिका ग्रंथि से जुड़े कैंसर का इलाज टारगेटेड थैरेपी से किया जाता है। इस थैरेपी में इस्तेमाल होने वाली नई दवाएं सीधे कैंसर की कोशिकाओं पर असर डालकर उन्हें निष्क्रिय कर देती हैं। इससे सामान्य कोशिकाएं प्रभावित नहीं होती और मरीज पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता। साथ ही पीड़ित का सर्वाइवल पीरियड भी 80 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
इसमें कैंसर से प्रभावित अंग का हिस्सा या पूरे अंग को ही निकाल लिया जाता है। कैंसर की सर्जरी हमेशा इसके सर्जन से ही करवानी चाहिए क्योंकि यदि इनका कुछ हिस्सा शरीर में ही छूट जाएगा तो फिर से ऑपरेशन करवाना पड़ सकता है।
रेडियो थैरेपी में किरणों द्वारा कैंसर की गांठ को जलाया जाता है या ऑपरेशन के बाद भी इसका उपयोग संभावित अवशेष को खत्म करने के लिए किया जा सकता है। वहीं, कीमोथैरेपी में दवाइयों से कैंसर का इलाज किया जाता है। दवाइयां, गोली या इंजेक्शन के रूप में हो सकती हैं।