क्या है तकनीक
सीएसईए तकनीक के तहत प्रसव की शुरुआत में महिला की पीठ में एक बारीक कैथेटर को फिक्स कर दिया जाता है। इसके जरिए एनेस्थेटिक और एनाल्जेसिक डोज (दर्दनिवारक) को उसके शरीर में पहुंचाते हैं।
जिससे दर्द का अहसास नहीं होता। साथ ही शिशु व महिला को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। प्रसव पीड़ा के दौरान महिला थोड़े से सहारे के साथ चल फिर भी सकती है जिसे वॉकिंग एपिड्यूरल कहते हैं।
नॉर्मल डिलीवरी के बाद स्थिति के अनुसार इस कैथेटर को हटा देते हैं।
ऐसे मिलेगी लेबर पेन से राहत
प्रसव पीड़ा शुरू होते ही महिला की पीठ में बारीक कैथेटर को फिक्स करते हैं।
कैथेटर के जरिए निश्चित मात्रा में दवा को एपिड्यूरल स्पेस में पहुंचाते हैं।
दवा के यहां पहुंचने के बाद महिला को दर्द का अहसास नहीं होता।
पीसीईए पंप से निश्चित मात्रा में दवा को शरीर में पहुंचाया जाता है।
ये भी खास
दर्द रहित प्रसव प्रक्रिया में पीसीईए (पेशेंट कंट्रोल एपिड्यूरल एनाल्जीसिया) पम्प को जोडक़र भी नया शोध किया गया है। इसके तहत प्रसूता खुद ही एनेस्थीसियोलॉजिस्ट की देखरेख में दर्द होने पर एक डिवाइस यानी पीसीईए पम्प की मदद से आवश्यकतानुसार दर्द की दवा ले सकती है।
इसके अलावा यदि गर्भवती महिला को हृदय, हाई ब्लड प्रेशर, हड्डियों या शारीरिक संरचना से जुड़ी बीमारी होती है तो उसमें दर्द के साथ तनाव का स्तर बढऩे से समस्याएं बढ़ जाती हैं जिसके लिए भी यह लाभदायक है।
इनके लिए मददगार
२-३ प्रतिशत महिलाओं की १६-१८ घंटे प्रसव पीड़ा सहन करने की क्षमता लगभग खत्म हो जाती है व कई दिक्कतेें होती हैं। ऐसे में ऑपरेशन कर प्रसव की स्थिति बनने पर कैथेटर से शरीर में पहले एनेस्थेटिक फिर एनाल्जेसिक दवाओं को पहुंचाते रहते हैं। यदि डिलीवरी सिजेरियन होती है तो २-३ दिन बाद इसे हटाते हैं।