आयुर्वेदिक थैरेपी तनाव को कम कर मन तो रिलैक्स करने के साथ ब्लड सर्कुलेशन बेहतर करती हैं। इसके अलावा ये शरीर को डिटॉक्स यानी विषैले तत्त्वों को बाहर निकलती है और शरीर को लचीला भी बनाती हैं। जानते हैं इनके बारे में…
इन आयुर्वेदिक थैरेपी से मिलेगी राहत
शिरोधारा
यह एक तरह की थैरेपी है जो खास तेल की मदद से की जाती है। इसे बनाने में महानारायण तेल, नीलभ्रंगादी, तिल का तेल आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे व्यक्ति मानसिक तौर पर रिलैक्स महसूस करता है। इस दौरान कुछ सावधानियों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे शिरोधारा के दौरान आंखें न खोलें, शरीर को रिलैक्स छोड़ दें।
हॉट टब थैरेपी
इसमें एक टब में गर्म पत्थर रखे जाते हैं और मिनरल वॉटर से इसे भर कर थैरेपी लेने वाले व्यक्तिको इसमें लिटा दिया जाता है। जब यह पानी गर्म पत्थरों के ऊपर से गुजरता है तो हीट बनती है जो व्यक्ति
को काफी रिलैक्स करती है।
बॉडी पैक
इसमें बॉडी पर अलग-अलग तरह के पैक लगाए जाते हैं जैसे मड पैक। इसमें शरीर पर मिट्टी का लेप किया जाता है। इसके अलावा दूध में फलों का गूदा और जड़ी-बूटियां मिलाकर गाढ़ा पैक या उबले चावलों में अदरक, इलायची आदि मिलाकर पैक तैयार कर इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें शरीर पर लगाकर बॉडी को सूती कपड़े की पट्टियों से लपेट दिया जाता है।
स्टीम बाथ
इसमें भाप का इस्तेमाल किया जाता है। एक चैंबर या कमरे में स्टीम तैयार की जाती है। स्टीम लेने वाले व्यक्ति को इस कमरे में बैठा दिया जाता है। करीब 25—30 मिनट तक स्टीम लेने को कहा जाता है। इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे स्टीम लेने से पहले 1 गिलास पानी जरूरी पीएं। थोड़ी—थोड़ी देर पर पानी पीते रहें। स्टीम लेने के दौरान सिर के ऊपर एक गीला टॉवल रखना जरूरी है। यह आपको बेचैनी से राहत देगा।
अरोमा थैरेपी
इसमें तिल के तेल में अरोमा यानी खुशबू के लिए यूकेलिप्टस, गुलाब, लैवेंडर, चमेली आदि का तेल डालकर मालिश करते हैं। इनकी खुशबू से मस्तिष्क काफी रिलैक्स होता है। अलग—अलग फायदे के लिए अलग—अलग तेल का प्रयोग किया जाता है। जैसे लैवेंडर का इस्तेमाल शांति के लिए, लेमन ग्रास का रिलैक्स के लिए, पिपरमेंट का यूज रिफ्रेशमेंट के लिए किया जाता है।
फायदे
ये थैरेपी तनाव कम कर मन को रिलैक्स करने के साथ ब्लड सर्कुलेशन बेहतर करती हैं। शरीर के जहरीले तत्त्वों को बाहर निकालकर त्वचा में कसावट लाती हैं। इसके अलावा ये उम्र के बढ़ते प्रभाव को भी कम करती हैं।
इनमें बचें
बुखार, इंफेक्शन और चोट की स्थिति में ये थैरेपी न कराएं।
सर्जरी के बाद भी 6 महीने तक परहेज करें।
हाई बीपी के मरीज स्टीम बाथ न लें।
पैरालिसिस या कैंसर जैसी बीमारियों में भी ट्रीटमेंट के तौर पर स्पा नहीं कराना चाहिए। हां, बॉडी को रिलैक्स करने के लिए विशेषज्ञ की सलाह से कुछ थैरेपी करा सकते हैं।
प्रेग्नेंसी में भी इनसे बचना चाहिए। 3 से 6 महीने की प्रेग्नेंसी में फुट थैरेपी करा सकती हैं, लेकिन इसके पहले या बाद में वह भी नहीं। नॉर्मल डिलीवरी के बाद 3 महीने तक और सिजेरियन के बाद 6 महीने तक न कराएं थैरेपी न कराएं।