प्रेग्नेंसी में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन का स्त्राव बढ़ने से खासकर पाचनतंत्र की नाजुक और नरम मांसपेशियां ज्यादा रिलैक्स हो जाती हैं। जिससे इसकी कार्यप्रणाली बाधित होती है और पेट साफ होने में शिथिलता आती है। वहीं दूसरी व तीसरी तिमाही में गर्भस्थ शिशु का आकार बढ़ने से आंतों पर पड़ने वाले दबाव की भी दिक्कत रहती है। हाइपोथायरॉइड के कारण भी कब्ज की आंशका रहती है। इसलिए थायरॉइड टैस्ट कराया जाता है।
हाई फायबर डाइट लें
चोकरयुक्त आटा, दलहन (सोयाबीन, ज्वार, मक्का व बाजरा), मोटा अनाज और हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मैथी, बथुआ आदि खाएं।
शरीर में तरल की मात्रा सामान्य बनी रहने से भोजन को पचने में आसानी होती है। ऐसे में रोजाना ७-८ गिलास पानी पीएं। जूस, सूप भी पी सकती हैं। हल्का फुल्का वर्कआउट करें
शरीर को अंदरूनी रूप से मजबूत बनाने के लिए फिजिकल एक्टिविटी करें। वॉक, योग, प्राणायाम, स्विमिंग, डांस करें। भोजन पचने में आसानी होगी।
अक्सर भोजन करने के बाद या तो पेट में भारीपन महसूस होता है या फिर गुडग़ुड़ जैसी आवाज आने जैसा अहसास होता है। इस पर ध्यान देना जरूरी। आयरन की हाई डोज
प्रेग्नेंसी में चलने वाली प्रमुख दवाओं में से जब आयरन की डोज अनियमित व जरूरत से ज्यादा ली जाए तो कब्ज रहती है। डोज व भोजन से मिलने वाले आयरन की मात्रा बैलेंस करें।
जिन्हें लंबे समय तक कब्ज रहे तो इसका कोई अन्य कारण या कोई बीमारी भी हो सकती है। लंबे समय तक कब्ज के साथ पेटदर्द, स्टूल के साथ म्यूकस या खून आए तो विशेषज्ञ को दिखाएं। कई बार सख्त स्टूल आना आंतों की नसों में सूजन का संकेत हो सकता है। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी ( Pregnancy Constipation ) के आखिरी माह में पाइल्स हो जाती है जो प्रसव बाद ठीक हो जाती हैं। ऐसा गर्भस्थ बच्चेदानी का रक्तवाहिनियों पर दबाव बढ़ने से होता है।