तत्कालीन राजा निहाल सिंह ने घंटाघर का सन् 1880 में कार्य शुरू कराया था। लेकिन सन् 1910 के आसपास राजा राम सिंह के कार्यकाल में यह बनकर तैयार हुआ। इसको बनाने के लिए इग्लैंड की कंपनी मैसर्स जिलेट जॉनसन क्रोपड्रोन ने बनाकर तैयार किया था। टावर की लगभग लंबाई 150 फीट है। जो उस समय देश में प्रथम स्थान पर था। इसकी आवाज करीब 12 किलोमीटर तक गूंजती थी। इसमें समय के साथ बजने वाला घंटे का वजन करीब 600 किलो है। टॉवर का निर्माण गोल परिधि में किया गया है। जिसमें 12 द्वार बने हुए हैंं। लेकिन अब यहअपनी पहचान खोता जा रहा है। देख रेख के अभाव में अब केवल इसका नाम ही रह गया हैं।
चारों दिशाओं में लगी घड़ी इस घंटाघर के चारों तरफ घडिय़ों में अलग-अलग समय है। स्थानीय लोगों ने बताया कि घडिय़ों का यह समय पिछले बीस साल से यहीं है। शहर की खास पहचान घंटाघर को अब नई घड़ी की उम्मीद बनी हुई है। पहले खराब होने के बाद इसको सहीं करने के लिए इंजीनियर भी आते थे। लेकिन अब सालों से कोई नहीं आया। कभी चार दिशाओं में अपनी घडिय़ों की चाल से इस शहर को समय का बोध कराने वाले घंटाघर को अब अपने गौरवशाली समय के लौटने का इंतजार है।
कलपुर्जे नहीं मिलने से बंद पड़ी है घड़ी पूर्व में नगर पालिका की ओर से घड़ी का रख-रखाव किया जाता था। लेकिन समय के साथ ही इस घड़ी के कलपुर्जे मिलना बंद हो गया। जब बंद हो जाती तो इसको शुरू कराने में काफी दिक्कत आती थी। लेकिन काफी समय से अब यह बंद पड़ी है। एक दफा घड़ी में लगा पैण्डलुम टूट गिया, जिसके वजह से ऊपरी हिस्से की सीढ़ी तक टूट गई। घड़ी का साइज इतना बड़ा है कि करीब छह फुट का व्यक्ति खड़ा हो सकता है।
सात दिन बाद घुमानी होती थी मशीन घंटाघर में लगी घड़ी विशाल है। पूर्व में नगर पालिका के एक कर्मचारी यहां ड्यूटी थी। जो करीब सात दिन में सीढिय़ों से ऊपर जाकर घड़ी की एक मशीन को घुमाकर आता था, जिससे हर घंटे पर घंटा बजता था। पैण्डलुम सेट होते थे जो बाद में नीचे की तरफ आने लगते थे। फिर कर्मचारी वापस जाकर उस मशीन को घुमा आता था। जिससे घंटाघट लगातार आवाज के साथ समय बताता था।
जीवित रखें शहर की धरोहर शिक्षाविद् अरविंद शर्मा ने बताया कि शहर में घंटाघर का विशेष महत्व है। यह शहर की धरोहर है इसे जीवित रहना चाहिए। यहां के लोग भी पता अपना घंटाघर बताते हैं। लेकिन बंद घडिय़ों को ठीक कराने कोई पहल नहीं हो रही है। घर में घड़ी बंद होने पर अपशगुन मानते हैं। टावर के चारों तरफ बेरिकेड्स लग जाए जिससे ऐतिहासिक इमारत संरक्षित हो सकती है। पं.दुर्गादत्त शास्त्री बताते हैं कि यह शहर की प्रमुख धरोहर हैं पहले समय का पता तेज आवाज के घंटे के साथ चलता था। लेकिन अब घड़ी बंद पड़ी इसको शुरू करना चाहिए। बंद घड़ी के कारण ही शहर का विकास रुका हुआ है। यहां से लोग गुजरते हैं तो घड़ी बंद दिखाई देती है। नगर परिषद आयुक्त व जिला कलक्टर को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
घंटाघर में लगी चार घडिय़ों का डायल एक ही था। यह शहर की एक धरोहर है। इसमें लगें पाट्र्स पीतल व तांबे के चोरी हो गए थे, जो अब अब मिल नहीं रहे है। उनकी भी इच्छा हैं कि यह सही हो। परिषद सही कराने का प्रयास करेगी। नहीं तो कुछ वैकल्पिक इंतजाम करेंगे।
– किंगपाल सिंह राजोरिया, आयुक्त, नगर परिषद धौलपुर