राजाखेडा उपखण्ड ईंट भ_ा नगरी के नाम से ख्यात हो चुका है। जहां 100 से अधिक ईंट भ_े संचालित हैं। इनमें से 25 से अधिक तो नगर पालिका क्षेत्र में ही संचालित हैं। कुल भट्टों में से कई भट्टे अवैध हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रत्येक भट्टे पर 250 से 500 तक उत्तरप्रदेश व बिहार के मजदूर और उनके परिजन मजदूरी करते हैं। इस हिसाब से क्षेत्र में कुल 25000 से 50000 तक मजदूर रहते हैं। लेकिन किसी भी भट्टे पर इनके लिए शौचालय नहीं बनाए गए हैं। जिससे ये सभी खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं। यह सब ग्रामीण विकास विभाग के नाम पर एक बड़ा बदनुमा दाग तो है ही। लोगों के अनुसार झूठे प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियो पर जांच का विषय भी है।
ओडीएफ जांच और प्रमाणन पर ही सवाल प्रकरण में क्षेत्र को ओडीएफ घोषित करने की प्रक्रिया ही शक के घेरे में आ रही है। जिसमें कई स्तर पर अधिकारियों के दल भी तैनात किए गए। अंकेक्षण भी हुआ। सोशल ऑडिट भी हुआ। स्वच्छता प्रभारी भी तैनात किया गया। राज्य स्तर के संदर्भ व्यक्ति की भी तैनाती हुई। लेकिन सब कागजों में ही होता रहा। किसी ने जमीनी हालात की जांच नहीं की। नतीजा 25000 से 50000 लोग आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। वे स्वास्थ्य पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
जिन अधिकारियों और कर्मचारियों ने ओडीएफ प्रमाणीकरण किया या इस प्रक्रिया में शामिल रहे उनके विरुद्ध प्रथमिकी दर्ज की जानी चाहिए। जिससे योजनाओं के कागजी अमल पर रोक लग सके। राजीव गुप्ता, पूर्व मंत्री व्यापार मंडल राजाखेड़ा
अधिकारी एसी चेम्बर्स से बाहर निकल कर हालात को देखें तो उनको जनता की समस्याओं का पता चले। क्षेत्र में अधिकांशत: काम कागजों में ही हो रहे हैं। सत्यम, छात्र नेता जब भट्टे ही अवैध रूप से चल रहे हैं उनकी ही जांच सिर्फ कागजों में है तो शौचालय की जांच कौन करेगा। ये तो सोने के अंडे देने वाली मुर्गियां हंै।सीताराम, नागरिक
उक्त मामले में जांच नहीं है। अगर ऐसा हुआ है तो जांच करवाई जाएगी। – रामदीन गुर्जर, कार्यवाहक विकास अधिकारी, पंचायत समिति राजाखेड़ा