शुक्ल योगः 17 अप्रैल 12.13 एएम तक
अभिजित मुहूर्तः 11.55 एएम से 12.46 पीएम तक
अमृतकालः 9.26 पीएम से 10.55 पीएम तक
विजय मुहूर्तः 2.27 पीएम से 3.18 पीएम तक
वरुथिनी एकादशी महत्व (Varuthini Ekadashi Vrat Puja)
इस दिन भगवान के वाराह रूप (Varah Swaroop Puja) और भगवान श्रीकृष्ण, भगवान के माधव स्वरूप की पूजा की जाती है। वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा कई धार्मिक ग्रंथों में बताई गई है। इस दिन पूजा पाठ सौभाग्य दिलाने वाला, और घर में सुख समृद्धि दिलाने वाला होता है। इस दिन भगवान विष्णु को जल में तुलसी दल डालकर अर्पित करना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी व्रत के नियम (Varuthini Ekadashi Vrat Niyam)
1. इस व्रत में भक्त को खुद को मन, वचन और कर्म से पवित्र रखना चाहिए। साथ ही तामसिक भोजन और विचार दोनों से खुद को अलग रखना चाहिए।
2. व्रत का संकल्प लेकर पीले वस्त्र धारण करना चाहिए।
3. भगवान विष्णु की पूजा में केसर, पंचामृत, हल्दी, तुलसी का पत्ता, पीले फूल, धूप, गंध, दीपक, चंदन का प्रयोग करना चाहिए।
4. वरुथिनी एकादशी पर व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरूर करना चाहिए।
5. वरुथिनी एकादशी पर मंत्रों का जाप तुलसी की माला से करना चाहिए। मान्यता है कि इससे मनोकामना पूरी होती है।
6. व्रत पूजा में पीला भोग और इसमें तुलसी का पत्ता अवश्य शामिल करना चाहिए।
7. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती ऊँ जय जगदीश हरे से करना चाहिए। इसके अलावा भगवान के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए। कपूर से भी आरती करनी चाहिए। इससे नकारात्मकता दूर होती है।
8.व्रती को बाल, नाखून और दाढ़ी नहीं काटना चाहिए। स्नान के समय साबुन का इस्तेमाल न करें, कपड़ों को भी साबुन से न धोएं।
9. इस दिन घर में झाड़ू भी न लगाएं, क्योंकि इससे कीट मर सकते हैं और भगवान हरि सभी जीव जंतुओं और प्राणियों के रक्षक हैं, उन्हें पसंद नहीं कि कोई जीव दूसरे जीव की जान ले।