व्रत वाले दिन पूरे दिन उपवास करना होता है। शाम को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उसके बाद फलाहार कर व्रत खोला जाता है। इस व्रत में तेल, नमक अथवा अन्न खाने की अनुमति नहीं होती है। केवल मात्र फलाहार पर ही आश्रित रहना होता है। इसके बाद अगले दिन यानि द्वादशी के दिन पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और दक्षिणा देनी चाहिए।
जो लोग वरुथिनी एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें इस दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए। क्रोध, झूठ व अन्य सभी प्रकार के पापकर्मों का त्याग कर देना चाहिए। इसके साथ ही यथाशक्ति पशुओं तथा पक्षियों को अन्न दान करना चाहिए। किसी गरीब की सेवा करनी चाहिए।