मानसिक पाप शिव महापुराण के अनुसार, हर मनुष्य जाने-अनजाने में मानसीक रूप से भी पाप करता है। दरअसल, मन में गलत विचारों का आना या लाना मानसिक पाप की श्रेणी में आता है। अगर आपके मन में गलत तरीके के विचार पनप रहे हैं तो इसे नियंत्रित करने के लिए योग-ध्यान करें।
वाचिक पाप कई बार इंसान बोलते वक्त ये नहीं सोचता कि वह क्या बोलने वाला है, क्या बोल रहा रहा है और इसका प्रभाव अगले पर क्या पड़ेगा? कहा जाता है कि अगर आपके बातों से किसी को दुख पहुंचता है तो वह वाचिक पाप के अंतर्गत आता है। ऐसे में हमेशा मिठी वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए ताकि सुनने वाला प्रसन्न रहे।
शारीरिक पाप हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रकृति को ईश्वरीय स्वरूप माना गया है। इंसान के अलावा जानवर, पेड़-पौधे भगवान की कृति है। कई बार मनुष्य पेड़-पौधे काट देते हैं, जानवरों की हत्या कर देते हैं। ये सब करना शारीरिक दोष में आता है। इसके अलावे कई बार हमारे पैरों के नीचे आने से छोटे जानवरों की मौत हो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार, ईश्वर की बनाई हर कृति का सम्मान करना चाहिए।
निंदा करना हर इंसान की प्रवृत्ति होती है दूसरों की निंदा करने की। निंदा करते वक्त हम ये नहीं देखते कि अगला इंसान कैसा और कौन है? इसलिए किसी की भी निंदा करने से बचना चाहिए, खासकर तपस्वी, वरिष्ठ और गुरुजन की निंदा करने से बचना चाहिए।
गलत लोगों के संपर्क में आना कई बार ऐसा भी होता है कि चाहे-अनचाहे इंसान गलत लोगों के संपर्क में आ जाता है। शिव महापुराण के अनुसार, चोरी करना, हत्या करना पाप है। इसके अलावे इन लोगों के संपर्क में आना भी पाप है। इन सब से बचने के लिए हर मनुष्य को धार्मिक पुस्तक पढ़ना चाहिए और सत्संग करना चाहिए।