षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा
प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी थी। जो भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह नियमित पूजा-अर्चना करती थी। लेकिन कभी किसी को दान नहीं देती थी। भगवान ने उसकी परीक्षा लेने के लिए भिक्षुक का रूप धारण किया और उससे भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने भगवान को खाली पात्र दे दिया।
भगवान ने उसके खाली पात्र को स्वीकार कर लिया और उसे वरदान दिया कि मृत्यु के बाद वह स्वर्ग में जाएगी। स्वर्ग में पहुंचने पर ब्राह्मणी को खाली घर मिला। वह परेशान होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगी। भगवान ने कहा कि उसने जीवनभर दान नहीं किया, इसलिए उसे यह परिणाम मिला।
ब्राह्मणी ने अपनी भूल स्वीकार की और क्षमा मांगी। तब भगवान विष्णु ने कहा, माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का व्रत करो। तिल का उपयोग छह प्रकार से (दान, स्नान, उबटन, भोजन, हवन और तर्पण) करके पुण्य अर्जित करो। इससे तुम्हें स्वर्ग में सुख-समृद्धि मिलेगी। ब्राह्मणी ने व्रत किया और उसे स्वर्ग में सुख-शांति प्राप्त हुई।
षट्तिला एकादशी का महत्व
षट्तिला एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है। इसका व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से दरिद्रता और दुखों से मुक्ति मिलती है। यहां तक कि अगर आप व्रत नहीं कर सकते तो सिर्फ कथा सुनने से भी वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। यह व्रत वाचिक, मानसिक और शारीरिक तीनों तरह के पापों से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत का फल कन्यादान, हजारों सालों की तपस्या और यज्ञों के बराबर माना गया है।
तिल का महत्व
षट्तिला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और तिल का भोग महत्वपूर्ण है। इस दिन तिल दान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। षट्तिला एकादशी का व्रत रखकर तिलों से स्नान, दान, तर्पण और पूजन किया जाता है। इस दिन तिल का उपयोग स्नान, प्रसाद, भोजन, दान और तर्पण में होता है। तिल के अनेक उपयोगों के कारण ही इसे षट्तिला एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि जितने तिल दान करेंगे, उतने ही पापों से मुक्ति मिलेगी।
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