हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र हैं। एक बचपन में शनि देव बहुत शैतानियां करते थे जिससे नाराज होकर सूर्यदेव शनि को लेकर भगवान शंकर जी के पास पहुंचे और शनि को अपना शिष्य बनाने का निवेदन किया। शिव जी ने शनि देव को शिष्य रूप में स्वीकार किया और उचित शिक्षा-दीक्षा देकर न्या का देवता घोषित किया। तभी शनि देव सभी को उनके अच्छे-बुरे कर्मों का फल देते हैं।
कहा जाता है कि यदि व्यक्ति मनसा−वाचा−कर्मणा शुचिता एवं नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों का पालन करें तो शनि के आधे दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं। जब कुण्डली में शनि विपरीत हो जायें तब अपने आप को बेहद सावधान कर लेना चाहिये। हमें सतर्क हो जाना चाहिये और सत्कर्मों की ओर मुड़ जाना चाहिये। यदि शनि के दुष्प्रभाव के दौर में हम अपना आचरण शुद्ध रखते हैं तो शनि अच्छा असर डालता है। यदि शनि के बुरे प्रभाव के समय में कोई भी गलत कार्य किया जाता है तो उसके बुरे परिणाम ही भोगने पड़ते हैं। शनि देव इतने अधिक न्याय प्रिय हैं कि वह राजा को रंक और रंक को राजा बनाने में देर नहीं लगाते। भगवान शनि देव अपराधी को किसी न किसी प्रकार से दण्ड अवश्य देते ही है।
धर्म शास्त्रों में शनि देव को पीतनेत्र, अधेामुखी−दृष्टिवान, कृश देह, लम्बी देहयष्टि, सघन शिरायुक्त, आलसी, कृष्णवर्ण, स्नायु सबल, निर्दय, बुद्धिहीन, मोटे नाखून और दांतों से युक्त, मलिनवेश, कान्तिविहीन, अपवित्र, तमोगुणी, क्रोधी आदि माना गया है। पुराणों के अनुसार, शनि पश्चिम दिशा में निवास करते हैं। मंगल और शनिवार को हनुमान जी के दर्शन करने से भी शनि के बुरे प्रभाव कुछ कमजोर हो जाते हैं। भारत में शनि का सबसे बड़ा मंदिर महाराष्ट्र के शिंगणापुर में है। तमिलनाडु के तंजावुर जिले में पवित्र शनि तीर्थ तिरूनल्ल्रू मंदिर स्थित है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी शनिदेव भव्य मंदिर बनें हैं।
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