उन्होंने बताया कि विदर्भ में उत्तंक नाम का एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था और वह पतिव्रता थी। उसके एक बेटा और एक बेटी यानी कुल दो संतान थीं। विवाह योग्य होने पर ब्राह्मण ने कन्या की शादी कर दी, हालांकि कुछ समय बाद उस पर विपत्ति आई और वह विधवा हो गई। इस पर दुखी ब्राह्मण दंपती नदी किनारे कुटिया बनाकर बेटी संग रहने लगा।
ब्राह्मण ने बताया कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी, तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है और चौथे दिन वह स्नान कर शुद्ध होती है। अब भी यह ऋषि पंचमी व्रत करेगी तो इसके दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अखंड सौभाग्य प्राप्त होगा। पिता की आज्ञा से लड़की ने ऋषि पंचमी व्रत किया। इससे उसके दुख दूर हो गए और अटल सौभाग्य मिला।