रावण जो अपनी अद्भुत शक्ति और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध था, ने कैलाश पर्वत को उठाकर भगवान शिव का ध्यान आकर्षित किया था। लेकिन जब वह सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाने में असफल रहा, तो यह एक बड़ा सवाल बनता है। इसका उत्तर रावण के व्यक्तित्व, उसके कर्म, और भगवान शिव की इच्छा से जुड़ा हुआ है।
Ravan: रावण का अहंकार और शिव का क्रोध
रावण जो अपनी अद्भुत शक्तियों और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध था। उसने जब कैलाश पर्वत तो भगवान शिव की निद्रा खुल गई। जब उन्होंने देखा कि यह हरकत रावण की है तो उनको क्रोध आ गया। भगवान शिव ने अहंकारी रावण को सबक सिखाने के लिए पैर के अंगूठे से कैलश पर्वत को दबा दिया। इससे रावण कराहने लगा तो भगवान ने माफ कर दिया। लेकिन जब राजा जनक ने सीता स्वयंवर में शिवधनुष तोड़ने की शर्त रखी। तो वहां भी रावण अपने अहंकार में लिप्त स्वयंवर में शामिल हुआ। मान्यता है कि शिवधनुष भगवान शिव का प्रतीक था। इसे उठाने के लिए केवल शक्ति नहीं, बल्कि भक्ति के साथ त्याग, विनम्रता और धर्म के प्रति निष्ठा आवश्यक थी। रावण में शक्ति तो थी। लेकिन अहंकार के कारण वह शिव धनुष को उठाने में असमर्थ रहा।
Ravan: भक्ति और धर्म की परीक्षा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव धनुष उठाने के लिए केवल शारीरिक शक्ति की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए आध्यात्मिक शक्ति और सच्ची भक्ति होना भी बहुत जरूरी है। हालांकि रावण शिव का अनन्य भक्त था। लेकिन उसका अहंकार और अधर्मपूर्ण कार्य उसके भक्ति मार्ग में बाधा बन गए।