ब्रह्म पुराण के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को हुआ था यानी भगवान का अवतरण चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि पर हुआ था। इसीलिए इसी दिन रामनवमी मनाई जाती है, जबकि अश्विन नवरात्रि की नवमी महानवमी कहलाती है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान राम का जन्म मध्याह्न काल (दिन के मध्य का समय) में हुआ था। इसलिए राम नवमी पूजा अनुष्ठान आदि मध्याह्न के समय (सुबह 11 से दोपहर 1 बजे के आसपास) ही किया जाता है। इस समय मंदिरों में भगवान श्री राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं।
भक्त भगवान श्री राम के नाम का जाप करते हैं। सबसे विशेष कार्यक्रम भगवान राम के जन्मस्थान अयोध्या में मनाया जाता है। इसके लिए दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं। सरयू नदी में पवित्र स्नान करने के लिए भक्तगण श्री राम जी के जन्मोत्सव में भाग लेने के लिए राम मंदिर जाते हैं। विशेष है कि श्री राम मंदिर बनने और प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहली रामनवमी है, जब भगवान का जन्मोत्सव उनके ही भवन में मनेगा।
चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी की शुरुआतः 16 अप्रैल 2024 को दोपहर 01:23 बजे से
नवमी तिथि का समापनः बुधवार 17 अप्रैल 2024 को दोपहर 03:14 बजे तक
(नोटः उदयातिथि में चैत्र शुक्ल नवमी 17 अप्रैल को होने से इसी दिन नवमी मनाई जाएगी।)
रामनवमी पूजा का मुहूर्तः सुबह 11.04 बजे से दोपहर 1.36 बजे तक
(नोटः भगवान राम का जन्म दोपहर में ही मनाया जाता है, इस दिन पूजा की अवधि 2 घंटे 33 मिनट की है।)
भारत में कई तरह के कैलेंडर प्रचलित हैं। इनमें अंतर के कारण कुछ जगहों पर रामनवमी 16 मई को मनाई जाएगी। इस दिन सीता नवमी भी मनेगी। इस दिन मध्याह्न पूजा का समय दोपहर 12.20 बजे होगा।
पंचांग के अनुसार यदि दो दिन मध्याह्न व्यापिनी नवमी हो तो पर दिन अर्थात अगले दिन व्रत रखा जाता है। अष्टमीयुक्त नवमी को वैष्णवों के लिए त्याज्य माना जाता है। इसलिए नवमी का उपवास करके दशमी में पारण करना चाहिए। वाराणसी के पुरोहित पं शिवम तिवारी के अनुसार जो लोग पुनर्वसु नक्षत्र को विशेष महत्व देते हैं उनके लिए पहले दिन पुनर्वसु नक्षत्र होने पर भी अष्टमीयुक्त नवमी होने से वह त्याज्य होगी। क्योंकि व्रत का आधार पुनर्वसु नक्षत्र नहीं नवमी तिथि है। पुनर्वसु युक्त होने पर अधिक पुण्य होता है।