Hanumanji Ke Rahasy: आपने देखा होगा कि हनुमान जी को छोड़कर भगवान शिव और उनके दूसरे अवतारों के नाम के आगे श्री नहीं लगाया जाता, जबकि भगवान राम सहित उनके सभी अवतारों जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण के नाम के आगे श्री लगाया जाता है।
दरअसल, भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का एक नाम श्री है और त्रेता युग में जब श्री हरि ने श्री राम का अवतार लिया तब लक्ष्मीजी ने सीता का अवतार लिया। माता सीता रूद्रावतार हनुमान को पुत्र मानती थीं। उनके इसी वात्सल्य भाव के कारण पुत्र के नाम से पहले माता श्री का नाम लगाया जाता है। इसीलिए हनुमानजी की स्तुति वाली पुस्तक को श्री हनुमान चालीसा (Hanumanji Rahasy ) कहते हैं।
ये भी पढ़ेंः jain tirth sammed shikharji: जैन समाज के लिए तीर्थ है शिखरजी , 23 वें तीर्थंकर का भी नाताश्री का यह भी महत्व, कैसे आम लोगों से जुड़ी परंपराः प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय के मुताबिक श्री का अर्थ शोभा, लक्ष्मी और कांति होती है। इनका उपयोग अलग-अलग संदर्भ में होता है। समाज में श्री लगाकर बड़े, बुजुर्गों को सम्मान दिया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस व्यक्ति में विकास करने और खोज करने की शक्ति होती है, वह श्रीयुक्त माना जाता है। यानी जो पुरुषार्थ से ऐश्वर्य हासिल करता है वह श्रीमान बनता है। सभी कार्यों में श्री होती हैं। इसलिए ऋषि, महापुरुष, तत्ववेत्ता और अन्य लोगों के नाम के साथ श्री लगाने की परंपरा आ गई।
हालांकि जब भगवान राम को श्रीराम कहा जाता है तो इससे ईश्वरत्व का बोध होता है। श्री पूरे ब्रह्मांड की प्राणशक्ति है, ईश्वर ने सृष्टि की रचना की, क्योंकि वह श्री से ओतप्रोत है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पत्नी, माता लक्ष्मी का एक नाम श्री है। इसलिए भगवान विष्णु के अवतारों के नाम के आगे माता लक्ष्मी का नाम जोड़कर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की एकरूपता का संदेश देते हैं और श्रहरि कहकर सम्मान देते हैं।