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श्राद्ध पक्ष में अपने घर पर ही ऐसे करें पित्रों के निमित्त पिण्डदान

श्राद्ध पक्ष में अपने घर पर ही ऐसे करें पित्रों के निमित्त पिण्डदान

Sep 21, 2018 / 03:09 pm

Shyam

pitru paksha pinddaan

श्राद्ध पक्ष में अपने घर पर ही ऐसे करें पित्रों के निमित्त पिण्डदान

श्राद्ध पक्ष में पिण्डदान करने का बड़ा ही महत्व बताया गया हैं- पिण्डदान के लिए पिण्ड जौ या गेहूँ के आटे में तिल, शहद, घृत, दूध मिलाकर लगभग एक- एक छटाँक आटे के पिण्ड बनायें जाते हैं । कुल 12 पिण्डदान करनें का विधान हैं । पिण्ड अर्पित करने के बाद इन पिण्डों को पक्षियों, गाय या मछलियों को ही खिलाने का विधान हैं । जाने आप भी बिना किसी की सहायता के अपने घर पर ही पिण्डदान का श्राद्धकर्म कर सकते हैं ।

ऐसे और इनकों करें पिण्डदान
सबसे पहले केले के दो हरे पत्ते या पत्तल लें एवं एक पर थोड़ा कुशा बिछाकर सारे पिण्ड रख दे, एवं दूसरी पत्तल को एक तरफ रख दें ।
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए कुशा बिछायें ।
मन्त्र
ॐ कुशोऽसि कुश पुत्रोऽसि, ब्रह्मणा निर्मितः पुरा ।।
त्वय्यचिर्तेऽचिर्तः सोऽस्तु, यस्याहं नाम कीर्तये ।।

पिण्ड समर्पण प्रार्थना
पिण्डों को कुशा पर बिछाने के बाद, हाथ जोड़कर पिण्ड समर्पण के भाव सहित नीचे लिखे मन्त्र का उच्चारण करते हुए नमस्कार करें-
ॐ आब्रह्मणो ये पितृवंशजाता, मातुस्तथा वंशभवा मदीयाः ।। वंशद्वये ये मम दासभूता, भृत्यास्तथैवाश्रितसेवकाश्च॥ मित्राणि शिष्याः पशवश्च वृक्षाः, दृष्टाश्च स्पृष्टाश्च कृतोपकाराः ।। जन्मान्तरे ये मम संगताश्च, तेषां स्वधा पिण्डमहं ददामि ।।

पिण्डदान

अब दूसरी वाली पत्तल पर एक एक मंत्र के साथ पिण्डदान करते चले । दाहिने हाथ में पिण्ड लेकर पितृतीर्थ मुद्रा से दक्षिणा दिशा की ओर मुख करके बैठे ।

1- देवताओं के लिए पहला पिण्ड छोड़े
ॐ उदीरतामवर उत्परास, ऽउन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः ।। असुं यऽईयुरवृका ऋतज्ञाः, ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ।।

2- दूसरा पिण्ड ऋषियों के निमित्त
ॐ अंगिरसो नः पितरो नवग्वा, अथर्वणो भृगवः सोम्यासः ।। तेषां वय सुमतौ यज्ञियानाम्, अपि भद्रे सौमनसे स्याम ॥

3- तीसरा पिण्ड दिव्य मानवों के निमित्त-
ॐ आयन्तु नः पितरः सोम्यासः, अग्निष्वात्ताः पथिभिदेर्वयानैः ।। अस्मिन्यज्ञे स्वधया मदन्तः, अधिब्रवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥

4- चौथा पिण्ड दिव्य पितरों के निमित्त
ॐ ऊजर वहन्तीरमृतं घृतं, पयः कीलालं परिस्रुत् ।। स्वधास्थ तर्पयत् मे पितृन् ॥

5- पाँचवाँ पिण्ड यम के निमित्त-
ॐ पितृव्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः । अक्षन्पितरोऽमीमदन्त, पितरोऽतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम् ॥

6- छठवाँ पिण्ड मनुष्य-पितरों के निमित्त
ॐ ये चेह पितरों ये च नेह, याँश्च विद्म याँ२ उ च न प्रविद्म ।। त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः, स्वधाभियञ सुकृतं जुषस्व ॥

7- सातवाँ पिण्ड मृतात्मा के निमित्त- (पिता, माता या अन्य संबंधी)
ॐ नमो वः पितरो रसाय, नमो वः पितरः शोषाय, नमो वः पितरों जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरों घोराय, नमो वः पितरों मन्यवे, नमो वः पितरः पितरों, नमो वो गृहान्नः पितरों, दत्त सतो वः पितरों देष्मैतद्वः, पितरों वासऽआधत्त ।।

8- आठवाँ पिण्ड पुत्रदार रहितों के निमित्त
ॐ पितृवंशे मृता ये च, मातृवंशे तथैव च ।। गुरुश्वसुरबन्धूनां, ये चान्ये बान्धवाः स्मृताः ॥ ये मे कुले लुप्त पिण्डाः, पुत्रदारविवर्जिता: ।। तेषां पिण्डों मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥

9- नौवाँ पिण्ड अविच्छिन्न कुलवंश वालों के निमित्त
ॐ उच्छिन्नकुल वंशानां, येषां दाता कुले नहि ।। धर्मपिण्डो मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥

10- दसवाँ पिण्ड गर्भपात से मर जाने वालों के निमित्त-
ॐ विरूपा आमगभार्श्च, ज्ञाताज्ञाताः कुले मम ॥ तेषां पिण्डों मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥

11- ग्यारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त-
ॐ अग्निदग्धाश्च ये जीवा, ये प्रदग्धाः कुले मम् ।। भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु, धर्मपिण्डं ददाम्यहम्॥

12- बारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त
ॐ ये बान्धवाऽबान्धवा वा, ये न्यजन्मनि बान्धवाः ।। तेषां पिण्डों मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥

पिण्डदान के बाद दुध, दही एवं शहद सभी पिण्डों पर मंत्रों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें ।

1- गाय का दुध
ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः ।। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।। ॐ दुग्धं ।। दुग्धं ।। दुग्धं ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ॥

2- दही
ॐ दधिक्राव्णऽअकारिषं, जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।। सुरभि नो मुखाकरत्प्रण, आयुषि तारिषत् ।। ॐ दधि ।। दधि ।। दधि ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ।।

3- शहद
ॐ मधुवाताऽऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।। माध्वीनर्: सन्त्वोषधीः ।। ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पाथिव रजः ।। मधु द्यौरस्तु नः पिता ।। ॐ मधुमान्नो वनस्पति, मधुमाँ२ऽ अस्तु सूर्य: ।। माध्वीगार्वो भवन्तु नः ।। ॐ मधु ।। मधु ।। मधु ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ।। तृप्यध्वम् ।।

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