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पितृ पक्ष 2019 : हमारे पितरों की कुल इतनी श्रेणियां होती है, इनके अनुसार श्राद्ध करने पर प्रसन्न होतें है दिवंगत पितर

Pitru Paksha 2019: There are so many categories of our fathers, according to them, the deceased ancestors are happy to perform Shraddha : पितृ पक्ष में दिवगंत पितरों को श्रद्धापूर्वक उनकी श्रेणी के अनुसार, श्राद्ध करने से प्रसन्न हो जाते हैं पूर्वक पितर। जानें अपने पूर्वज पितरों की श्रेणियां। कौन-कौन सी है।

Sep 10, 2019 / 01:56 pm

Shyam

पितृ पक्ष 2019 : हमारे पितरों की कुल इतनी श्रेणियां होती है, इनके अनुसार श्राद्ध करने पर प्रसन्न होतें है दिवंगत पितर

पितृ पक्ष 2019 : हमारे पितरों की कुल इतनी श्रेणियां होती है, इनके अनुसार श्राद्ध करने पर प्रसन्न होतें है दिवंगत पितर

पितृ पक्ष के बारे में मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण आदि में पितरों की अनेक श्रेणियां का वर्णन आता है। सामान्यत: हम पितरों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं- एक तो दिव्य पितर, और दूसरा पूर्वज पितर। पितृ पक्ष में दिवगंत पितरों को श्रद्धापूर्वक उनकी श्रेणी के अनुसार, श्राद्ध करने से प्रसन्न हो जाते हैं पूर्वक पितर। जानें अपने पूर्वज पितरों की श्रेणियां। कौन-कौन सी है।

 

पितृपक्ष 2019 : जानें कौन हैं पितर पूर्वज और किनका श्राद्ध करना ही चाहिए

पितर विभिन्न लोकों में रहने वाली वह दिव्यात्माएं एवं सामान्य जीवात्माएं हैं, जिनसे देवता मनुष्य आदि की उत्पत्ति होती है, और यह अत्यंत शक्तिशाली माने जाते हैं। पितरगण अगर पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म से प्रसन्न हो जाएं तो अपनी संतानों को दीर्घायु, संतति, धन, यश एवं सभी प्रकार के सुख का आशीर्वाद देते हैं। चौरासी लाख योनियों में से एक योनि पितृ योनि भी मानी जाती है, जिसे पूर्वज पितर मानते हैं।

 

अगर आप पितृ पक्ष में श्राद्ध करने वाले हैं तो, इन 10 बातों का पालन करना नहीं भूले, नहीं तो..

1- दिव्य पितर- दिव्य पितर वे पितर हैं जिनसे देवता मनुष्य आदि उत्पन्न हुए। इन पितरों की उत्पत्ति ब्रह्मा के पुत्र मनु के विभिन्न ऋषि पुत्रों से हुई है। दिव्य पितरों के सात गण माने गए हैं-

(1)- अग्निष्वात्त- इनकी उत्पत्ति मनु के पुत्र महर्षि मरीचि से हुई है अग्निष्वात देवताओं के पितर हैं। ये “सोम” नामक लोकों में निवास करते हैं। इन पितरों का देवता भी सम्मान करते हैं।

(2)- बर्हिर्षद- इनकी उत्पत्ति महर्षि अत्रि से हुई है यह देव, दानव, यक्ष,गंधर्व, सर्प,राक्षस, सुपर्ण एवं किन्नरों के पितर हैं । यह स्वर्ग में स्थित “विभ्राज लोक “में रहते हैं। जो इस लोक में निवास करने वाले पितरों के लिए श्राद्ध करते हैं, उन्हें भी इस लोक की प्राप्ति होती है।

(3)- सोमसद- सोमसद महर्षि विराट् के पुत्र हैं यह साध्यों के पितर हैं।

(4)- सोमपा- सोमपा महर्षि भृगु के पुत्र हैं ये ब्राह्मणों के पितर हैं। ये ” सुमानस लोक “में रहते हैं। यह लोग ‘ब्रह्मलोक’ के ऊपर स्थित है।

(5)- हविर्भुज या हविष्यमान- महर्षि अंगिरा के पुत्र हविर्भुज हैं। ये क्षत्रियों के पितर हैं। ये मार्तण्ड मण्डल लोक में रहते हैं । यह स्वर्ग और मोक्ष फल प्रदान करने वाले हैं। तीर्थों में श्राद्ध करने वाले श्रेष्ठ क्षत्रिय इन्हीं के लोग में जाते हैं।

(6)- आज्यपा- आज्यपा वेश्यों के पितर हैं, इनके पिता महर्षि पुलस्त्य हैं । ये ‘कामदुध लोक’ में रहते हैं। इन पितरों का श्राद्ध करने वाले व्यक्ति इस लोक में पहुंचते हैं।

(7)- सुकालि- सुकालि महर्षि वशिष्ठ के पुत्र हैं ये शूद्रों के पितर माने गए हैं।

 

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उपरोक्त में से प्रथम तीन मूर्तिरहित और शेष चार मूर्तिमान पितर कहे गए हैं। उक्त सात प्रमुख पितृ गण के अलावा और भी दिव्य पितर हैं। उदाहरण के लिए अनग्निदग्ध, काव्य, सौम्य, आदि।

2- पूर्वज पितर- इनमें वे पितर सम्मिलित होते हैं, जो कि किसी कुल या व्यक्ति के पूर्वज है। इनका ही एकोदिष्ट आदि श्राद्ध होता है । इन्हें दो वर्गों में विभक्त किया जाता है।

(1)- सपिण्ड पितर- मृत पिता, पितामह एवं प्रपितामह के तीन पीढ़ी के पूर्वज सपिण्ड पितर कहलाते हैं यह पिण्डभागी होते हैं।

(2)- लेपभागभोजी पितर- सपिण्ड पितरों से ऊपर तीन पीढ़ी तक के पितर लेपभागभोजी पितर कहलाते हैं। ये पितर चंद्रलोक के ऊपर स्थित ” पितृलोक” में रहते हैं।

उक्त समस्त पितरों को संतुष्टि के आधार पर संतुष्ट एवं असंतुष्ट पितर में भी वर्गीकृत किया जाता है।

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