ज्योतिष के अनुसार, जो व्यक्ति जीते जी अपने माता पिता और घर के बुजुर्गों काअपमान करते हैं उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं और जब ये बुजुर्ग लोग शरीर छोड़ते हैं तो दुख के कारण उनके मन से उनकी आत्मा को कष्ट पहुंचता है। यही पितृदोष का कारण बनता है। आज के समय में कुछ लोग इसे अंधविश्वास तक बता देते हैं। लेकिन पित्रों के असंतुष्ट होने के कारण ही उनकी संतानों की कुंडली में पित्र दोष बनता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृदोष व्यक्ति की प्रगति का एक बड़ा कारण भी बनता है। पितृदोष के कारण व्यक्ति के सांसारिक जीवन में तथा आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती है। कुछ परिवारों में ऐसा दिखाई देता है मानो संपूर्ण परिवार पर कोई काली छाया है। परिवार के कुछ सदस्यों को विविध प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
दैनिक जीवन में पितृदोष के लक्षण- विवाह न हो पाना, वैवाहिक जीवन में अशांति का होना, अच्छी पढ़ाई करने के बावजूद भी परीक्षा में कुछ न सूझना, नौकरी छूट जाना गर्भधारण में समस्या, गर्भपात, मानसिक दृष्टि से विकलांग बच्चे अथवा विशिष्ट समस्याओं से ग्रस्त बच्चे पैदा होना, बच्चों की अकाल मृत्यु होना। फिजूल खर्चा बढ़ना, घर में बीमारी, निर्बलता, निराश हो जान, घर में कोई मंगल कार्य न होना, व्यापार में दिक्कत आना आदि।
ज्योतिष के अनुसार, पितृदोष निवारण के लिए अपने घर पर ही ये उपाय करना चाहिए-
पितृ-दोष मुक्ति निवारण यंत्र की स्थापना घर में करके प्रतिदिन उसकी पूजा करना चाहिए। इस मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” का जप हर रोज 108 बार करना चाहिए। घर की दक्षिण दिशा वाली दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर माला चढ़ाना चाहिए। पीपल वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय पित्रों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करना चाहिए। शाम के समय में दीप जलाएं। नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है।
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