गायत्री महामंत्र की उपासना का महत्व
इस संसार में जितने भी प्राणी है, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से मिलकर बना है, इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर मां गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में प्रकाशित और विद्यमान हो रही है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है। गायत्री महाविज्ञान ग्रंथ में उल्लेख आता है कि भगवान श्रीराम, कृष्ण सहित सभी देवता भी नित्य गायत्री महामंत्र की उपासना ही करते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर मनुष्य को भी नित्य प्रतिदिन मां गायत्री के महामंत्र गायत्री मंत्र की उपासना अवश्य करनी चाहिए।
गायत्री जयंती विशेष 12 जून : महिमा मां गायत्री की, गायत्री महामंत्र से ऐसे हुई सृष्टि की रचना
गायत्री मंत्र का भावार्थ
गायत्री महामंत्र- “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”
गायत्री मंत्र का भावार्थः- उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम (मानव मात्र) अपनी अंर्तात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र की महिमा
1- ब्रह्माण्ड के सभी मंत्रों का राजा है गायत्री महामंत्र, इसके जपने से मिल जाता है सभी मंत्रों का फल।
2- सभी वेदों की उत्पत्ति, सभी देवों की उत्पत्ति एवं संपूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति मां गायत्री के गर्भ से ही हुई है।
3- गायत्री माता को सृष्टि का आधार वेदमाता, विश्वमाता और देवमाता भगवती ऋतंभरा मां गायत्री कहा जाता है।
4- ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गायत्री की जंयती मनाई जाती है।
5- सभी मंत्रों का राजा है 24 अक्षरों वाला गायत्री मंत्र
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6- गायत्री मंत्र साधना से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
7- जो व्यक्ति नियमित ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप, ध्यान साधना, यज्ञ आदि उपासना करता है, मां गायत्री उसके सभी कष्टों को दूर कर उसके भीतर देवत्व, सदज्ञान और सदबुद्धि की स्थापना करती है।
8- गायत्री के युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने लिखा है- अन्य सभी मंत्रों की उत्पत्ति भी गायत्री के गर्भ से ही हुई है इसलिए गायत्री मंत्र को सभी मंत्रों का राजा और गुरू मंत्र कहा जाता है।
9- नियमित सूर्योदय के समय गायत्री का जप करने से अनेक मनोकामना पूरी हो जाती है।
10- वेदों में मां गायत्री को पंचमुखों वाली भी बताया है, जिसका अर्थ है कि यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड- जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है।
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