इस व्रत को भक्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार कई प्रकार से रखते हैं, कुछ लोग एक समय फलाहार, कुछ लोग निर्जला, कुछ केवल फल, कुछ लोग सिर्फ जल तो कुछ क्षीर (दुग्ध सामग्री) ग्रहण करते हैं। हालांकि इसको व्रत शुरू करते समय संकल्प के दौरान ही तय कर लेना होता है। लेकिन एकादशी व्रत में किसी भी प्रकार के अन्न और अनाज का सेवन वर्जित होता है। और यह नियम सभी 24 एकादशी में एक सा होता है। लेकिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी दूसरी एकादशियों से थोड़ी अलग है, इसे निर्जला ही रहना होता है। मान्यता है कि सिर्फ इस एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशी का फल मिल जाता है।
एकादशी व्रत में क्या न करें
- एकादशी व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को दशमी वाले दिन मांस, प्याज और मसूर की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। 2. एकादशी वाले दिन प्रातः पेड़ से तोड़ी हुई लकड़ी की दातुन नहीं करनी चाहिए। इसके स्थान पर नीबू, जामुन या आम के पत्तों को चबाकर मुंह शुद्ध कर लेना चाहिए और अंगुली से कंठ शुद्ध करना चाहिए।
- एकादशी के दिन वृक्ष से पत्ता तोड़ना वर्जित है, इसलिए जरूरी हो तो वृक्ष से गिरे हुए पत्तों का ही उपयोग करें। पत्ते उपलब्ध न होने पर बारह बार शुद्ध जल से कुल्ले कर मुख शुद्धि करनी चाहिए।
- एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगानी चाहिए वर्ना चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है और भगवान विष्णु को यह नापसंद होता है।
- एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिये और न ही अधिक बोलना चाहिए। क्योंकि अधिक बोलने से ऐसी बातें भी व्यक्ति बोल सकता है जो उसे नहीं बोलना चाहिए।
- फलाहार व्रत करने वाले को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए, वो आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन कर सकता है, जो भी फलाहार लें, भगवान को भोग लगाकर और तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणादि देकर प्रसन्न कर परिक्रमा लेनी चाहिए।
- किसी भी प्रकार क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध चाण्डाल का रूप होता है, देव रूप बनकर संतोष कर लेना चाहिए।
एकादशी व्रत में क्या करें
- एकादशी व्रत के दिन दिनचर्या शुरू करे मुख शुद्धि आदि के बाद स्नान कर मंदिर में जाकर गीता-पाठ करना चाहिए या पुरोहित से भगवतगीता का पाठ सुनना चाहिए। साथ ही भगवान के सम्मुख इस प्रकार प्रण करना चाहिए – आज मैं दुराचारी, चोर और पाखण्डी व्यक्ति से वार्ता-व्यवहार नहीं करूंगा। किसी से कड़वी बात कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा। गाय, ब्राह्मण आदि को फलाहार औरअन्न आदि देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि जागरण कर कीर्तन करूंगा, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करूंगा। राम, कृष्ण इत्यादि विष्णु सहस्रनाम को कण्ठ का आभूषण बनाऊंगा।”
- इस संकल्प के बाद श्रीहरि भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करना चाहिए, कहना चाहिए – “हे तीनों लोकों के स्वामी! मेरे प्रण की रक्षा करना। मेरी लाज आपके हाथ है, इस प्रण को पूरा कर सकूं, ऐसी शक्ति मुझे देना प्रभु!”
- यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर बैठें तो इस दोष के निवारण के लिए भगवान सूर्य नारायण के दर्शन करके, धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा-अर्चना कर क्षमा याचना करें।
- एकादशी वाले दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए, लेकिन स्वयं किसी का दिया अन्न कदापि न लें।
- असत्य वचन और कपटादि कुकर्मों से दूर रहना चाहिए।
- किसी संबंधी की मृत्यु होने पर उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और श्री गंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए।
- प्राणी मात्र को प्रभु का अवतार समझकर किसी प्रकार का छल-कपट नहीं करना चाहिए। सभी से मीठे वचन बोलने चाहिए। अपना अपमान करने या कड़वे शब्द बोलने वाले को भी आशीर्वाद देना चाहिए।
- सन्तोष का फल सदैव मीठा होता है। सत्य वचन बोलने चाहिए और मन में दया भाव रखना चाहिए। इस विधि से व्रत करने वाला मनुष्य दिव्य फल को प्राप्त करता है।