महर्षि व्यास ने कहा – “हे वायु पुत्र! वृषभ संक्रांति और मिथुन संक्रांति के बीच में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है, उस दिन निर्जल व्रत करना चाहिए। हालांकि इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन करते समय यदि मुख में जल चला जाए तो इसका कोई दोष नहीं है, लेकिन आचमन में 6 माशे जल से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। आचमन में 6 माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि मनुष्य जलपान न करे तो उससे बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए। इसके बाद भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दान के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते, बल्कि भगवान श्रीहरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। संसार में सबसे उत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है। अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस दिन गौदान करना चाहिए। इस एकादशी को भीमसेनी या पाण्डव एकादशी भी कहते हैं।
निर्जल व्रत करने से पहले भगवान का पूजन करना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु! आज मैं निर्जल व्रत करता हूं, इसके दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा। मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा वस्त्र आदि से ढंककर स्वर्ण सहित किसी सुपात्र को दान करना चाहिए। इस व्रत के अंतराल में जो मनुष्य स्नान, तप आदि करते हैं, उन्हें करोड़ पल स्वर्णदान का फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन यज्ञ, होम आदि करते हैं, उसके फल का तो वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इस निर्जला एकादशी के व्रत के पुण्य से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उनको चाण्डाल समझना चाहिए। वे अंत में नरक में जाते हैं। ब्रह्म हत्यारे, मद्यमान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से ईर्ष्या करने वाले, झूठ बोलने वाले भी इस व्रत को करने से स्वर्ग के भागी बन जाते हैं।
हे अर्जुन! जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके निम्नलिखित कर्म हैं, उन्हें सर्वप्रथम विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए। इसके बाद गौदान करना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, छत्र आदि का दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस कथा का प्रेमपूर्वक श्रवण करते हैं और पठन करते हैं वे भी स्वर्ग के अधिकारी हो जाते हैं।”