शास्त्रों में उल्लेख आता है कि पुरातन काल में दुर्गम नामक एक दैत्य राक्षस हुआ था, उसने प्रजापति भगवान ब्रह्माजी का घोर तप करके उनसे आशीर्वाद मांगकर, सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे परिणाम स्वरूप देवताओं का बल क्षीण हो गया और सभी देवताओं दुर्गम से हारकर स्वर्ग से बाहर हो गए ओर दुर्गम ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। इसके बाद सभी देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली आद्यशक्ति का आह्वान किया।
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माँ आद्यशक्ति देवताओं के आह्वान पर प्रकट हुईं, उन्होंने देवताओं से बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में कहा कि हे माता दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं देकर स्वर्ग से बाहर कर दिया है। अतः हे माता आप उस असुर दुर्गम का वध कर हमारी सहायता करें। देवताओं की पुकार सुनकर माता ने उन्हें असुर दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया। जब यह बात असुर दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख असुर दुर्गम स्वयं ही माता आद्यशक्ति से युद्ध करने आया।
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असुर दुर्गम को देखकर माता आद्यशक्ति ने काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला आदि कई सहायक अपनी देवी शक्तियों का आह्वान कर सभी एक साथ असुर दुर्गम से युद्ध करने लगी। माँ आद्यशक्ति और असुर दुर्गम के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें देवी भगवती ने दुर्गम का वध कर दिया। असुर दुर्गम का वध करते ही सभी देवगण आद्यशक्ति को असुर दुर्गम का वध करने के कारण माँ दुर्गा के नाम से पुकारने लगे और दुर्गा रूप में माता की पूजा अर्चना करने लगे। इस तरह माँ दुर्गा दुर्गा महाशक्ति बन गई
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