सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदैव से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने नारद जी की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम् च नारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं।
देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है। दरअसल देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं।
नारद जी इधर से उधर चारों दिशाओं में घूमकर सीधे संवाद करते हैं और सीधे संवाद भेजते हैं, इसलिए नारद जी सतत सजग-सक्रिय रहते हुए ‘स्पॉट-रिपोर्टिंग’ करते हैं जिसमें जीवंतता है। देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए जहां भी पाखंड देखते हैं उसे खंड-खंड करने के लिए ही तो लोकमंगल की दृष्टि से संवाद करते हैं।
त्रेतायुग के रामावतार से लेकर द्वापर युग के कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके ‘इधर-उधर’ संवाद करने से जब राम का रावण से या कृष्ण का कंस से दंगल होता है तभी तो लोक का मंगल होता है। इसलिए तो देवर्षि नारद दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंडल के संवाददाता माने जाते हैं।
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