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Mohini Ekadashi Katha: ये है मोहिनी एकादशी व्रत कथा, हजार गौदान का मिलता है पुण्यफल

Mohini Ekadashi Katha in hindi हर महीने में दो एकादशी पड़ती हैं। इसमें वैशाख शुक्ल एकादशी, मोहिनी एकादशी कहलाती है। मोहिनी एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस संसार के सारे सुख मिलते हैं, सभी पाप का नाश होता है और बाद में मोक्ष मिलता है। लेकिन व्रत पूर्ण करने के लिए मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ना जरूरी है और इसको पढ़ने सुनने से एक हजार गौदान का पुण्यफल मिलता है। इसलिए आइये पढ़ते हैं मोहिनी एकादशी व्रत कथा (Mohini Ekadashi Katha in hindi)…

भोपालMay 19, 2024 / 04:13 pm

Pravin Pandey

Mohini Ekadashi Katha in hindi

मोहिनी एकादशी व्रत कथा

मोहिनी एकादशी व्रत कथा

एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा, हे मधुसूदन! वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसके उपवास को करने का क्या नियम है? कृपा कर यह सब मुझे विस्तार से बताएं।
श्रीकृष्ण ने कहा, ‘हे अर्जुन! मैं एक पौराणिक कथा सुनाता हूं, इसे महर्षि वशिष्ठ जी ने श्रीरामचंद्रजी को बताया था। ध्यान से सुनो-
एक समय की बात है, श्री राम जी ने महर्षि वशिष्ठ से कहा, ‘हे गुरुश्रेष्ठ! मैंने जनकनंदिनी सीताजी के वियोग में बहुत कष्ट भोगे हैं, अतः मेरे कष्टों का नाश किस प्रकार होगा? आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे मेरे सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाएं।’
इस पर महर्षि वशिष्ठ ने कहा, ‘हे श्रीराम! आपने बहुत उत्तम प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यन्त कुशाग्र और पवित्र है। आपके नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। आपने लोकहित में बड़ा अच्छा प्रश्न पूछा है। मैं आपको एक एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूं, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है। इस एकादशी का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप और क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इस उपवास के प्रभाव से मनुष्य मोह के जाल से मुक्त हो जाता है। अतः हे राम! दुखी मनुष्य को इस एकादशी का उपवास अवश्य ही करना चाहिए। इस व्रत के करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
अब आप इसकी कथा को श्रद्धापूर्वक सुनिए- प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी थी। उस नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से पूर्ण था। उसका नाम धनपाल था। वह अत्यन्त धर्मात्मा और नारायण-भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, तालाब, धर्मशालाएं बनवाए, सड़कों के किनारे आम, जामुन, नीम आदि के वृक्ष लगवाए थे। इस वैश्य (व्यापारी) के पांच बेटे थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यंत पापी और दुष्ट था।
वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में बिताता था। वह बड़ा ही अधम (पाप करने वाला) था और देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था। अपने पिता का अधिकांश धन वह बुरे व्यसनों में ही उड़ाया करता था। मद्यपान और मांसभक्षण करना उसका नित्य कर्म था। जब बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुखी होकर उसके पिता, भाइयों और कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निंदा करने लगे। घर से निकलने के बाद वह अपने आभूषणों और वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना जीवन-यापन करने लगा।
धन खत्म हो जाने पर वेश्याओं और उसके दुष्ट साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। जब वह भूख-प्यास से दुखी हो गया तो उसने चोरी करने का विचार किया और रात में चोरी करके अपना पेट पालने लगा, लेकिन एक दिन वह पकड़ा गया। हालांकि सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जानकर छोड़ दिया। जब वह दूसरी बार फिर पकड़ा गया, तब सिपाहियों ने उसे राजा के सामने पेश किया और सारी बात बताई। तब राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया। कारागार में राजा के आदेश से उसे नाना प्रकार के कष्ट दिए गए और आखिर में उसे नगर से निष्कासित करने का आदेश दिया। दुखी होकर उसे नगर छोड़ना पड़ा।
अब वह वन में पशु-पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा और बहेलिया बन गया। धनुष-बाण से वन के निरीह जीवों को मार-मारकर खाने और बेचने लगा। एक बार वह भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला तथा कौण्डिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। इन दिनों वैशाख का महीना था। कौण्डिन्य मुनि गंगा स्नान करके आए थे, उनके भीगे वस्त्रों की छींटें मात्र से इस पापी पर पड़ गईं, जिसके फलस्वरूप उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह अधम, ऋषि के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर कहने लगा, ‘हे महात्मा! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किए हैं, कृपा कर आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण और धन रहित उपाय बताइए।’
ऋषि ने कहा, ‘तू ध्यान देकर सुन, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कर। इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।’ ऋषि के वचनों को सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी बताई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
हे श्रीराम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अन्त में वह गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को गया। संसार में इस व्रत से उत्तम दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य के श्रवण और पठन से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य एक सहस्र गौदान के पुण्य के समान है।
(नोट-इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं, www.patrika.com इसका दावा नहीं करता। इसको अपनाने से पहले और विस्तृत जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।)

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